Tuesday, March 12, 2024

तुम जो मिले तो

हृदय के भावों को लिखना खुद से बातें करना जैसा होता है। जब मैंने लिखना शुरू किया तो मैंने अपने भीतर के द्वंद्व को जाना और प्रत्यक्ष उसका अनुभव किया। जीवन के विभिन्न क्षणों में प्रेम, विरह,करुणा,वेदना,उमंग और उत्साह से मेरा साक्षात्कार मेरी कविताओं के माध्यम से ही हुआ। कालजयी और स्थापित रचनाकारों की रचनाओं से जहां एक तरफ सामयिक परिवेश एवं जीवन दर्शन का बोध हुआ तो वहीं दूसरी तरफ अन्तर्मन से उठते भावों की अभिव्यक्ति को एक दिशा मिली जो स्वयं को समझने में सहायक सिद्ध हुई। व्यक्तिगत रूप से प्रतिपल यही लगता है कि किसी दूसरे को जानने एवं समझने से पूर्व स्वयं को जानना आवश्यक है और जितना हम स्वयं को समझ लेते हैं उतना ही आसान हो जाता है किसी दूसरे की मनोदशा एवं परिस्थिति को समझ पाना। स्वयं को जानने एवं समझने की इस यात्रा में जीवन अभूतपूर्व रूप में नई दिशा और ऊंचाइयों को प्राप्त होता दिखाई पड़ता है। हम सामाजिक,नैतिक एवं व्यवहारिक रूप में सहज होते चले जाते हैं। 

साहित्य की कसौटी पर भले ही यह काव्य संग्रह निम्नतम हो किन्तु यह मेरे स्वयं के अनुभव की अभिव्यक्ति है। आशा है ये शब्द आपके हृदय को छूकर मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे और मेरी जीवन यात्रा को सफल करेंगे।   

Monday, February 19, 2024

उत्कोच

 ट्रिंग ट्रिंग.......हेलो साहब ..हैलो मैं दीपक बोल रहा हूँ गूँजनपुरा से

साहब-कौन दीपक??क्या साहब पहचाने नही कल ही तो मिले थे डाक बंगले पर।

साहब-अच्छा हां दीपक..याद आया । और आज काम पर नही गए क्या।


दीपक-कौन सा काम सर lockdown में हम मजदूरों को कौन पूछ रहा है। एक काम था साहब आपसे।


साहब-हां बताओ ।


दीपक-साहब वो सड़क के किनारे अपना मकान है न उसके सामने बरसात में बहुत पानी भर जाता है।बहुत समस्या होती है हम लोगों को। कई बार माननीय जी से कहे लेकिन आज भी जस का तस है।


साहब-तो हमसे क्या चाहते हो


दीपक-साहब आप तो बड़े अधिकारी हैं आप जो चाहे वो कर सकते हैं।थोड़ा रहम हमारे ऊपर भी कर दीजिए।


साहब-ठीक है तुम एक प्रार्थना पत्र दो मैं प्रस्ताव बनाकर भेज देता हूँ । पास हो जाएगी कि तो बन जाएगी।


दीपक-प्रस्ताव और एस्टीमेट में तो काफी समय लग जायेगा सर  आप अपने तरीके से करा दो न।


साहब-मेरा कोई तरीका नही है । मैं एस्टीमेट बना दूंगा तुम डिपाजिट करा दो तो तुम्हारे घर के सामने की समस्या दूर हो जाएगी।लेकिन पास एस्टीमेट के पूरे पैसे विभाग में जमा कराने होंगे।


दीपक-एस्टीमेट न बनवाइये साहब वैसे ही करा दीजिये। हम तो अपने आदमी हैं।कहिये तो माननीय जी से बात करा दें।


साहब-नही ऐसे नही होता है बिना एस्टीमेट पास हुए कुछ नही होगा। अब फोन रखो।


ट्रिंग ट्रिंग...हेलो  माननीय जी मैं दीपक बोल रहा हूँ ।

माननीय जी-हाँ बोलो


दीपक-सर हमारे गांव में सड़क बन रहा है ।बहुत अच्छा है।लेकिन हमारे घर के सामने भी पानी भरा रहता है वो भी करा दीजिये।ज्यादा मटेरियल नही लगेगा।आप इजाजत दें तो मैं काम भर का मटेरियल मेन रोड से उठा लाऊं।

माननीय जी-कितना मटेरियल लगेगा। बहुत ज्यादा मत ले जाना और मेरा नाम न लेना मैं जेई से कह दूंगा।


दीपक- माननीय जी।जेई साहब हमारा ट्रक पकड़ लिए हैं और मटेरियल नही ले जाने दे रहे हैं।सब गांव वालों से पैसा भी वसूल रहे हैं।


माननीय जी-कह दो मटेरियल उनके बाप का नही है।का नाम है जेई का।


दीपक-दिवाकर सिंह।


माननीय जी-बात कराओ।


ट्रिंग ट्रिंग

माननीय जी-

हेलो जेई साहब अपनी कार्य संस्कृति सुधार लो।अब पहले जैसा नही चलेगा।छोड़ दो इनका ट्रक ।थोड़ा मटेरियल दे दो घर के सामने बिछा देंगे।


जेई साहब-माननीय जी हम मना थोड़ी कर रहे हैं हम तो कह रहे हैं कि एस्टीमेट पास कराकर पैसे विभाग में जमा करा दें। हम खुद ही बनवा देंगे। या फिर अगली योजना का इन्तेजार करें।


माननीय जी- ऐसा है हमसे ज्यादा ज्ञान मत झाड़ो।खूब जानते हैं तुम्हारी ईमानदारी को।काम करो गरीब आदमी का ।मैं और कुछ नही सुनना चाहता।


जेई साहब-नही हो पायेगा साहब। आप ही नियम से काम करने को कहते हैं अब आप ही नियम तोड़ने के लिए कह रहे हैं।

क्षमा करें सर।नही हो पायेगा।


कुछ दिनों बाद


ट्रिंग ट्रिंग हेलो


दीपक: माननीय जी हमारा काम हुआ नही


माननीय जी:क्यों मैनें तो जेई को कह दिया था


दीपक : हां लेकिन वो एस्टीमेट का पैसा जमा कराने पर अड़े है।

माननीय जी-कितना पैसा मांग रहे हैं।


दीपक- 20465 का एस्टीमेट बनाये हैं।हम 16 हजार ही दे पाएंगे।


माननीय जी: तुम 16 हजार दो साले को लेकिन सीधे उसे मत देना ....चालाक है लेगा नही। तुम उसके किसी कर्मचारी या लेबर को देना और उसकी वीडियो बना लेना ।आगे मैं निपट लूंगा।

सारी जेईगिरी निकल दूंगा।


दीपक-ऐसा करने में हमारा कोई नुकसान तो नही।


माननीय जी- कोई नुकसान नही होगा।तुम गरीब हो और हम गरीबों के ही हैं।


दो दिन बाद


ट्रिंग ट्रिंग


कर्मचारी-हेलो साहब आदिल बोल रहा हूँ


वो हम दीपक के यहां आएं है ये हमको बुलाये थे कि एस्टीमेट का पैसा जमा करना है।पर आज शनिवार है अब आफिस भी बंद हो गया है।और ये कह रहे हैं कि आज ही पैसा जमा करेंगे।


जेई साहब- आज तो हो नही पायेगा रख लो बाद में करा देंगे।


एक सप्ताह के बाद

शिकायकर्ता दीपक का काम हो चुका है।घर के सामने की सड़क बन चुकी है।


Breaking News

H7Tv से लाइव अपडेट


Pwd विभाग के जेई ने सड़क बनवाने के नाम पर गरीब से झटके 20000।घटना विजयपुर नगरपंचायत के गूँजनपुरा टोला की।मजदूर के जरिये गरीब दीपक से हड़पे 20000 का वीडियो वायरल।


माननीय जी शिकायत पर विभाग के निदेशक ने टीम गठित कर दोषी जेई को निलंबित किया और मजदूर कर्मचारी को बर्खास्त किया।


माननीय जी का कहना है कि भ्रष्टाचार बिल्कुल बर्दास्त नही किया जाएगा।


#गरीब दीपक बेहद गरीब था और उसके पास हाई resolution कैमरा वाला स्मार्ट फोन भी था।

और पैसे भी थे जो कहीं भी किसी को भी देने के लिए तैयार था। बस नियम से नही दे सकता था।क्योंकि चाचा अबकी दोबारा निर्वाचित हुए हैं।तो नियम कानून का तो सवाल ही नही पैदा होता है।


#मीडिया जबरदस्त मसाला मिला है।पिछले बार हम भी काम दिए थे साले को अब आया है ऊंट पहाड़ के नीचे।


#प्रबंधन  जी सर। अच्छा सर।अभी तुरन्त कार्यवाही करते हैं।


उत्कोच अर्थात घूस उस अपराध का नाम है जो वास्तव में अस्तित्व में नही है ।इसका केवल नाम राह गया है। यदि यह अस्तित्व में होती तो घूस देनेवाला और लेने वाला दोनों दोषी होते। किन्तु यहां तो सिर्फ लेने वाला ही दोषी है क्योंकि देने वाले ने बड़े प्यार से बुलाकर उसे देता है और फिर उसकी शिकायत कर्ता है। वर्ना हम भी जानते हैं कि कोई उसके बगीचे का एक आम भी नही तोड़ सकता है शोषण कर रिश्वत लेना तो बहुत दूर की बात है।


#तो कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि नियम कानून से कोई समझौता नही किसी भी कीमत पर नही। चाहे माननीय जी कहें चाहे उनके  बप्पा।# चाहे तथाकथित शोषित गरीब#

Saturday, July 15, 2023

आवरण

मनुष्य से बड़ा व्यभिचारी शायद ही जगत में कोई दूसरा जीव होगा। आवरण का प्रपंच तो मनुष्य की दुर्बलता और अहंकार का प्रतीक है। मनुष्य ही है जो जानवरों की खाल से बने वस्त्र पहन सकता है,पंछियों को पिंजरे में कैद कर सकता है,कुत्तों के गले में पट्टा, बैलों के गले में घंटी और घोड़े के पांव में नाल ठोंक सकता है यह प्रतिभा जानवरों में नही है। इसीलिये तो जानवरों में बलात्कार करने का हुनर नही है, अनावृत्त रहकर भी बेचारे सहज रहते हैं कैसे तुच्छ जीव हैं। पुरुष सदियों से आधे अधूरे नंग धड़ंग स्त्रियों के सामने बेटे,भाई, भतीजे, देवर,ससुर चाचा,ताऊ बनकर आते रहे पर स्त्रियों सहज रहीं किंतु पुरुष स्त्री को आंशिक अनावृत्त देख भी सहज न हो सके, वासनाओं में उलझे रहे और अपनी दुर्बलता को चरित्रहीनता और व्यभिचार जैसे शब्दों के पीछे छुपा दिया। इसीलिए तो कभी चाचा,कभी मामा, कभी भाई, कभी देवर और आजकल तो बाप भी। सीमाओं ने संसार को जन्म दिया है और जो सीमाओं के बाहर है वो परमात्मा है।

Tuesday, July 4, 2023

सइयाँ बिजली वाले

बिजली की तार छुए पिया बार बार छुए

फिर भी न कोई जोश और न जवानी है

अधर में लटकी है  दर दर भटकी है

लगता है कि व्यर्थ अब मेरी जिंदगानी है


सुने है कि काम करता है हाई वोल्टेज का 

फिर भी लो वोल्टेज की इसकी कहानी है

चारों ओर ख्वाहिशें हैं  ख्वाहिशों का समंदर है

बस आंख में ही है और कहीं नही पानी है

जिया मेरा धड़के है बायीं आँख फड़के है

मन के जो तार जुड़े फ्यूज उड़ जाता है

देखता है मेरी तरफ मद भरी आंखों से

पर सीढ़ी तार लिए कहीं और मुड़ जाता है

लाख चिट्टी लिखूं, लाख लिखूं लव लेटर

उसके मेरे बीच मे हैं जाने कैसा इंसुलेटर

अर्थ फाल्ट ओवर करंट सब गया बेकार

पंक्चर होता नही बिजली गिरी हजार। 

हाय रे विधाता क्या गजब मनमानी है

लगता है कि व्यर्थ अब मेरी जिंदगानी है।


एक रोज सांझ ढले मौसमी खुमार रहा

खिड़की से बार बार पिया था निहार रहा

शिव की कृपा हुई रति के भाग जगे

राग रागिनी सजे मन के सितार बजे

प्रेम की मधुर घड़ी अपलक मैं खड़ी

पूर्ण होगी प्रार्थना आस है मुझे बड़ी।

विकास

 मोहन ...बेटा मोहन..कुछ खा ले फिर खेलने जाना..मोहन..कहाँ चला  गया अभी तो स्कूल से आया था..क्यों अपनी बूढ़ी दादी को सता रहा है,कहाँ छिपा है ?? मोहन को सामने न पाकर बूढ़ी जमुना काकी कुछ विचलित हुई। होती भी क्यों न ..बुढ़ापे का एक ही सहारा था..बेटा और बहू दोनों विदेश जा बसे थे।जमुना काकी को अपनी मिट्टी से बड़ा लगाव था सो पोते मोहन को ले गांव में ही रह गई।बेटा हर महीने परदेश से जमुना काकी और मोहन के गुजर बसर के लिए पैसे भेज देता। बस यूं ही जमुना काकी का गुजारा चल रहा था। छह साल के मोहन पर दादी की परवरिश का पूरा प्रभाव था। वह भी गांव के परिवेश और प्रकृति के आनंद में तल्लीन रहता था।मिट्टी से सना हुआ,स्कूल यूनिफार्म पर मिट्टी की एक परत लपेटे अभी तो स्कूल से आया था। बूढ़ी दादी को एक झलक दिखा अचानक जाने कहाँ चला गया।

ये लड़का एकदम अपने बाप पर  गया है वो भी एक मिनट के लिए घर मे नही रुकता,जरूर कहीं अपनी टोली के साथ खेलने निकल गया होगा। दादी भूख लगी है कुछ खाने को दो न...कुंए की सीढ़ियों पर बैठे मोहन की आवाज सुन जमुना काकी की जान में जान आई..अरे मोहन बचवा तू वहां क्या कर रहा है.आ खाना खा ले..तेरे लिए खीर बनाई है..खीर का नाम सुनते ही मोहन भागता हुआ आकर जमुना काकी  से लिपट गया.. दादी बहुत भूख लगी है जल्दी से खीर दो ना.. अच्छा जब इतनी भूख लगी थी तो बाहर कुएं की सीढ़ियों पर जाकर क्यों बैठा था..और वो मुखिया जी के घर की तरफ क्यों देख रहा था .बार बार उचक उचक कर..दादी पता है !!आज स्कूल में वो लंबी चुटिया वाले पुराने गुरु जी आये थे जो कभी कभी आते हैं और जो पिछली बार कह के गए थे कि मुखिया जी के घर विकास आने वाला है..आज उन्होंने बताया कि मुखिया जी के घर विकास आ गया है।और कह रहे थे कि बच्चों तुम सब मन लगा कर पढ़ो तो तुम्हारे घर भी विकास आयेगा..दादी ये विकास क्या है और मुखिया जी के घर पर क्यों आया है..हमारे घर पर क्यों नही आया..पहले तू खीर खा ले फिर बताती हूँ..

यह कहकर जमुना काकी बड़े प्यार से कटोरी भर खीर रसोई से लाई और मोहन को अपने हाथों से खिलाया।उन्हें लगा शायद खीर खाने में तल्लीन मोहन शायद अपने प्रश्नों को भूल जाये।पर मोहन तो मोहन था,खीर खाते ही उसने दादी से पूछ ही लिया। दादी अब बताओ न ये विकास क्या है।क्यों तेरे लंबी चुटिया वाले गुरुजी ने नही बताया..बताया होता तो तुमसे क्यों पूछता..बताओ न दादी..और मुझे मुखिया के घर ले चलो न मुझे विकास को देखना है....

अभी अभी स्कूल से आया है कुछ देर आराम तो कर ले..मुखिया का घर कुंए की सीढ़ियों से दिखाई जरूर देता लेकिन वो गांव के दूसरी छोर पर हैं ..पैदल जाना पड़ेगा।इतनी दूर पैदल चल लेगा तू। अब मुझमे इतनी ताकत नही रही कि तुझे गोद में उठाकर मुखिया के घर तक चल सकूं । अब मैं बूढ़ी जो हो चुकी है।...पर मैं बूढ़ा थोड़े हूँ..मैं पैदल ही जाऊंगा। तुम चलो न दादी..ठीक है बाबा.. चलती हूँ..

Monday, February 13, 2023

कोरी गप्प/बंडलबाजी

कोरी गप्प/बन्डल बाजी

गाँव गिराव में जून की दोपहरी में आम के पेड़ के नीचे संकठा, दामोदर और बिरजू बैठे गप्प हांक रहे हैं। गजोधर  भईया का आगमन होता है-

ए संकठा कईसा है मतलब एकदम दुपहरी में गर्मी का पूरा आनंद लई रहे हो और बिरजुवा पसीना से लथपथ कितना चमक रहा है तू। पेट भरा है कि एक दम खाली ए बैठे हो। 

सवेरे से तेज गरम हवा चल रहा, आम गिर रहा है,खाइ रहे है और का गजोधर भईया..... सुने हैं हवा और तेज होगा, बरसात भी होगी,  कौनव तूफान आइ रहा है। आम गिरे तो सब बटोर लेंगे, लेकिन आप हियाँ कैसे ? 

उ सब छोड़ो पहिले ई बताओ घर के पिछवारे से नाली काहे खुला,बजबजा रहा है.....नया टेकनालजी आया है...एक दम हल्का ......एकदम सरल......वोका इस्तेमाल करो....। 

कईसा टेक्नालजी भईया......

जब बिजली रहता है तो आम के पेड़ के नीचे पड़ा रहता है....आम के आगे बढ़ता ही नहीं है...एकदम ही बुड़बक है। 

अरे टीवी में समाचार देखा कर...सब चैनल दिखा रहा है कल सवेरे से ही....बार बार दिखा रहा है कि सब आदमी,लड़का,औरत सब सीख सके।  विज्ञान का नया खोज है। .नाली को पूरा बंद कर,ढांक दे एकदम से ..... बस एक पतला छोटा से छेद छोड़ दे......और वोहमा पाइप लगाई के खाली सलंडर भर ले......मूरख कितना गैस बर्बाद कर रहा है तुम और तुम्हरे जैसा कितना लोग।  

बिरजू.....ए बिरजू......तू काहे अउंघा रहा है.....अबकी आलू का पैदावार त ठीक रहा है ना.....

हाँ गजोधर भईया.....आलू त पिछला बरस से दुगना पैदा हुआ है इस बार.....

भगवान की किरपा बरसी है और तू  बैठा अउंघा रहा है। जल्दी शहर जा....नया मशीन लगा है.....आलू से सोना बन रहा है.... । अब तक इतना सोना बन चुका है कि आधा शहर सोने का होई गवा है।........उ रम चरना याद है ना....

कऊन रम चरना भईया........ .

सुखियापुर वाला रमचरना .....वही जो अहमदाबाद गया था कमाने....एक साल पहिले लऊटा है...आस पास के दस गाँव में सबसे ज्यादा आलू वही के खेत में पैदा हुआ है....सोने के ईंटा से घर बनवा रहा है.......। 

हम बदनसीब त चूक गए अबकी आलू बोये ही नहीं पर तू काहे बेसुध पड़ा है। जा शहर आलू लेके।

अंदर की खबर है....केजीएफ़ वाले राकिया का नजर है  पूरे देश का आलू पे। पुष्पा भी जंगल से निकल चुका है।  जल्दी शहर नहीं गया त ना आलू रहेगा ना सोना बनाने का मशीन। कल सबेरे जल्दी ही निकल जा। 

दामोदरा..........ए दामोदरा ऐसे ही बीड़ी पी पी के करेजा ना जलाऊ। केतना सुंदर शरीर मिला है,ताकत मिला है.....संस्कार मिला है। एक महीना से भागवत सुन रहा है, दो दिन से मानस बांच रहा है और आज खाली बैठा बीड़ी पी रहा है।बीड़ी से एक दम करियाय जा रहा है। ई सब से बाहर निकाल देश दुनिया से कौनव मतलब नहीं है। का का हो रहा है....आदमी चाँद से मंगल और मंगल से आगे निकल रहा है । कुछ खबर है कि बस बीड़ी ही चलेगा आगे....।  देश दुनिया का प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं है तुम्हरा।  

का होई गवा गजोधर भईया ? उक्रेन खतम होई गवा का.....सुनामी फिर आई गवा का ? अमरीका पे हमला तो नाही हुआ ?  ईरान-इराक में तेल का कुआँ में आग तो नाही लगा ! का खबर है ?....

भक बुड़बक..... मुँह खोले नहीं कि भक्क से बक दिये।.....जब सोचो.......हरदम बुरा ही सोचो, अरे विदेश में सभ्यता कहाँ से कहाँ पहुँच रहा है और तुम हौ कि सुनामी और तेल के कुआँ में ही अटके हो....

का होई गवा गजोधर भईया.....

स्वीडन का नाम सुने हो....कइसे सुनोगे.....सारा समय तो पूजा पाठ में ....कुछ और बचा भी तो बीड़ी और बंडलबाजीईए में गुजार दे रहे हो। 

अब सुनो....का कहि रहे हैं हम कि स्वीडन में नया टूर्नामेंट होई वाला है,एकदम नया.....खेले तो बहुत होगे लेकिन ऐसा टूर्नामेंट सुने नहीं होगे.....

कईसा टूर्नामेंट भईया.......का खेला जाता है इसमे...

अरे उहै खेल जो सब अपनी औरतन के साथ खेलत हैं...दिया बुझा के....अब खुल्लम खुल्ला मुक़ाबला होई स्वीडन में...

चलिहौ का भऊजी का लइके, मुक़ाबला में हिस्सा लेने......

अरे का कहि रहे हो गजोधर भईया हमको तो सुनकर ही शरम आ रहा है..... अइसा भी कोई खेल होता है का....। 

होता है तबही तो बताई रहे हैं.....सभ्यता कतना आगे बढ़ रहा है....तुमको कुछ पता ही नही है.....। 

राम राम ..... राधेश्याम ....देवता हमका माफ करो....हम हियाँ ही ठीक है.....तुम जाओ खेलौ टूर्नामेंट.....। ई सब तुम्हरे जैसे महापुरुष के ही बस का है।हम तुमको अच्छे से जानत हैं ..... नियत के ठीक हो....संयम रखत हो....सही गलत खाली जानत नहीं हो,समझत भी हो......औरतन का देवी का तरह पूजत हो...नज़र एकदम गंगा मईया की तरह निर्मल रहता है....हम त....

हम त का ....दामोदर

हम त बस राम राम............राधेश्याम...।

काहे उल्टी गंगा बहाई रहे हो।धरम करम और सत्संग तुम करत हो और महापुरुष हमका बतावत हो दामोदर। केतना बड़ा झूठ बोले हो। बीड़ी का असर है ई सब।

सही कहत अहि भइया। ई झूठ नही सच है।
एक सच और भी है जिसका कहने का हिम्मत नही होता  लेकिन आज कहेंगे।.....

.......गजोधर भईया......हम त खाली बाहर से फूला, ताकतवर और संस्कारी दिखाई देता है। धरम करम और सत्संग भी करता है पर भीतर से एकदम कमजोर है...बाहर से जितना साफ है अंदर से उतना ही गंदा है...ई चेहरा पे ना जाओ.....इ खाली बाहर से चमकता है.....। भीतर से कोइला है....देवी की पूजा करता है लेकिन....
....लेकिन औरत का देखत ही हमका कुछ होई जात है .......छोट छोट लड़कियन के लिए भी मन में हवस रहता है....यही कारण त हम अपनी बिटिया को घर से बाहर नहीं निकलने देता... उसको अपना सामने भी नहीं आने देता है......बहुरिया को पर्दा मे रखता है.......बहिन से दूर रहता है। ...............

.....एक ठो राक्षस है हमरा भीतर जो रावण से भी बड़ा है, दुर्योधन से भी खतर नाक है......दुःशासन और कंस से भी बड़ा महापापी है ......जिसको हम रोज देखता है...... डर से अपनी आँख बंद कर लेता है......उ ठहाका लगा कर हँसता है और हमरी नजर में उतर जाता है। तुम्हरी भऊजी का पता है उ राक्षस के बारे में । तुमका नहीं पता ।

का बोल रहा है दामोदर.... बीड़ी के साथ गाँजा भी पीने लगा है क्या...... या अफीम सूंघ के बैठा है ? 

एकदम होश में.... गजोधर भईया। 

दामोदर सही कहत है उ राक्षस खाली दामोदर के भीतर ही नहीं हर तीसरे आदमी के भीतर है और रोज सवेरे समाचार पढ़ के त ऐसा लगता है कि छोट बड़ा सब ......वही के चपेट में है। सब ससुरा आदमी लोग ढोंग करता है सुर होने का.......असुर है ससुरा...असुर।   

बुद्धि भ्रष्ट होई गई है तुम दुइनों की। प्रेत सवार है। कौनव व्यभिचारी की कबर पे फूल चढ़ाई के लौटे हो का। का बात शुरू किए थे और का बक रहे...जबान खराब कर लिए...एक दम अशुद्ध होई गए हो...चलो हियाँ से, चलकर  गंगा में एक डुबकी लगाओ सब निर्मल हो जाएगा।

इका तो गंगा मईया भी न धोइ सकत है। चारो धाम,मंदिर मस्जिद, देवी,देवता, जादू टोना जंतर मंतर केहू ना ठीक कर सकत है।........

......केतना करोड़ साल लगा कीड़ा मकोड़ा से जानवर, जानवर से आदमी और आदमी से इंसान बनई में।
एक क्षण भी न लगा सब तहस नहस, बर्बाद करई में।
जो तुमको दुनिया में लाई, लोरी गाई के सुलाई, पाल पास के बड़ा की, बिटिया बनके भाग्य जगाई, बहिन बनके स्नेह लुटाई ....जेका तुम अर्धांगिनी कहत हो,अपनी आत्मा का हिस्सा कहत हो ......देखो अपने आस पास कइसे मार रहे, पीट रहे हत्या कर रहे।.... चीर रहे, नोच रहे, कैसे गीध के जैसन देखो।.....इतनी निर्ममता कि गीध भी ना देख पाए ,लुपत होई गए दुनिया से।

देख सकत हो तो देखो ओकी छाती पे अपने दांतों और नाखूनों के निशान सुन सकत हो तो सुनो..खून से लथपथ, निर्बस्त क्षत विक्षत तुम्हरे पांव के नीचे से आती उसकी चीख। गोंद दिए हो चाकुओं से,टुकड़ा टुकड़ा कर दबाई दिए हो मिट्टी में । कौनव सबूत कौनव निशान ना रहे जलाई रहे हो हर रोज।

एतनी क्रूरता,......पहचान पाई रहे हो कि नही हमको और अपने को। ये हमही,बिरजू और तुमही हो गजोधर भइया।

ई...इ..ई दामोदरा और बिरजुआ तुम दुइनों होगे मगर हम नही है। ठीक से पढ़ लिख लिए होते तो दिमाग भ्रष्ट ना होता। हम त पहिले ही कहि रहे थे गाँव छोड़ छाड़ के शहर चलो। लेकिन माने नहीं...ना तुम ना तुम्हारे माई बाप।

वाह गजोधरा बड़ा घमंड है तोका अपने शहर पे,पढ़ाई लिखाई पे। त खबर मिली कि नही.....बहुतै पढ़ा लिखा,इतिहास,भूगोल विज्ञान,नियम कानून का ज्ञानी, समाज का रक्षक..बड़े शहर का बड़ा अफसर....कैसा लूटा है अपने साथ काम करने वाली औरत का। ....
कइसे टुकड़ा टुकड़ा कर कूकर में उबाल कर कुत्ते को खिलाता रहा तुम्हारे बड़े शहर का बड़ा आदमी। कौनव जगह सुरक्षित है तुम्हरे शहर में, दफ्तर, अस्पताल, बस, ट्रेन, गली, मोहल्ला,आरक पारक।

.....ई सबसे बच के कोई का लगता है कि दुनिया बनाने वाले गॉड,भगवान,अल्लाह की शरण में जाके कुछ सहारा मिलेगा त भगवान का बड़का भगत ही दबोच ले रहा है...तार तार कर दे रहा है। .....

जो संस्कारी है जेका तुम पैरवी करत हो जो शांत है, सौम्य है, जेकरे हृदय में औरत के लिए बड़ी श्रद्धा है सम्मान है। तुम देख नही पा रहे हो वो हाथ पांव नही हिला रहा है, चिल्ला भी नही रहा है,गालियां भी नही दे रहा है.... औरत को देवी मान हाथ जोड़े खड़ा है वो कैसे अपनी आंखों से उस देवी के कपड़े उतार रहा है,उसके आंचल में झांक रहा है। एक मौका नहीं छोड़ रहा है,नजर गड़ाए है। तुम नही देख सकत हो काहे की तुम खाली बाहर बाहर,अच्छा अच्छा देख रहे है। हम बाहर देख कर अपने भीतर भी देख रहा हूँ। कितना विकराल,वीभत्स,अट्टहास कर रहा हमरे भीतर।

ममता प्रेम और सहानुभूति की चाह में हमरे कंधे पर सर टिकाए आखिर कहाँ जाए ई बिटिया, ई बहिन,ई देवी हम से छिप के, हम छिप के।

का तुम बचाई सकते हो, तुम्हरा भगवान बचा सकता है, शिक्षा दीक्षा, कानून और समाज बचाई सकता है। 

बस कर दामोदरा...लेई जा बिरजुआ इका हियाँ से अब और नहीं सुना जाता।

खिड़की से झाँकती दामोदर की पत्नी ये सब सुन अपनी बिटिया को आँचल में छुपाए आसमान की ओर देख रही है।

#नारी तुम केवल श्रध्दा हो।
#बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।
#यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तंत्र देवताः
#अपराजिता



  

Friday, September 10, 2021

संकेत

यहाँ तो बड़ी लंबी लाइन लगी है..अपना क्या नंबर है भइया..अपना 457 है..लाइन में लगते हुए पूरब ने अपने छोटे भाई आकाश को रजिस्ट्रेशन पर्ची थमा दी।सरकारी अस्पताल में एम०आर०आई० कक्ष के बार मरीजों और उनके तीमारदारों की इतनी लंबी कतार आकाश ने पहली बार देखी थी तो विचलित होना स्वाभाविक ही था।आज तो पूरा दिन टेस्ट में लग जायेगा फिर डॉक्टर साहब आगे का इलाज कैसे शुरू करेंगे कहीं दिशा की तकलीफ और न बढ़ जाये.. चिंता मत करो..दोनों टाइम इंजेक्शन लग रहे हैं उससे दिशा को कुछ राहत है....बस आज टेस्ट हो जाये..तुमको कुछ खाना हो तो तुम बाहर से खाकर आ जाओ मैं तो लाइन में लगा ही हूँ...हाँ.. अक्कू तुम जाओ ..भईया तो है ही ना..दिशा ने धीमे स्वर में आकाश से कहा.. अच्छा ठीक है ..मैं जाता हूँ पर मेरे आने से पहले नंबर आ जाये तो घबराना नही।..इतनी बार एम०आर०आई० चुकी है,मैं नही घबराने वाली.तुम जाओ और जल्दी से खाकर आ जाओ तुमने सुबह से कुछ नही खाया है..दिशा ने आकाश को बीच में टोकते हुए कहा।
आकाश खाना खाने बाहर चला गया। पूरब अपनी छोटी बहन दिशा को व्हील चेयर पर लिए कतार में खड़ा रहा।
स्वभाव से बेहद जिंदादिल,हँसमुख और मिलनसार दिशा उम्र में पूरब से छोटी और आकाश से बड़ी थी।

लगभग 10 साल पहले एस०एल०ई० नामक असाध्य और ला इलाज बीमारी ने दिशा को अपनी चपेट में ले लिया उसके बाद अस्पताल,डॉक्टर और दवाइयों से जो नाता जुड़ा वो आज तक नही टूटा। दिन भर अपनी चहलकदमी और हंसी ठहाकों से मौसम में उल्लास और गति घोलने वाली खुद कब व्हीलचेयर पर आ गई पता ही नही चला।
पिता जी सरकारी नौकरी में थे और घर से काफी दूर दूसरे जिले में तैनात थे तो बमुश्किल से छुट्टियों में ही घर आ पाते थे ,माँ गृहणी थी इसलिए दिशा के इलाज की जिम्मेदारी दोनों भाइयों ने उठा रखी थी। गृह जनपद इलाहाबाद में बीमारी के समुचित इलाज की व्यवस्था न होने के कारण दिशा को राजधानी लखनऊ में रेफर किया गया था।अक्सर मौसम के बदलाव के साथ बीमारी का प्रभाव बढ़ता तो दिशा को अस्पताल में भर्ती करना पड़ जाता था। और एक बार जो भर्ती हुए तो महीने पंद्रह दिन लग ही जाते।इसलिए अस्पताल से घर और घर से अस्पताल आना जाना जीवन का एक अंग बन गया था।
इन सब के बावजूद भी दिशा के चेहरे की मुस्कान बनी रहती जैसे उसने दर्द को अपनाकर मुस्कुराना सीख लिया हो। बीमारी ने दिशा के शरीर को जरूर दुर्बल कर दिया था पर मन से उसने काफी हार नही मानी यही वजह थी कि कई बार कोमा जैसी स्थिति में मृत्य से साक्षात्कार करके भी वह जिंदगी का दामन थामे मुस्कुराती हुई सब को चकित कर जाती।

इस बार बरसात खत्म हुई तो मौसम के बदलाव के साथ एक बार फिर फेफड़ों में संक्रमण बढ़ने के कारण दिशा को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।
लगभग एक घंटा बीतने के बाद आकाश भोजन करके लौटा...और पानी की बोतल आगे बढ़ाते हुए बोला...ये लो भइया पानी पी लो...अभी डॉक्टर दानिश आये थे... उन्होंने जल्द ही जांच करा कर वार्ड में आने के लिए कहा है..जल्द ही दिशा का नंबर आने वाला है.. पूरब ने पानी पीने के बाद बोतल आकाश को थामते हुए कहा।
ऐसा क्यों दिशा का नंबर पहले क्यों....पता नही...उन्होंने कुछ बताया नहीं बस जांच कराकर वार्ड में आने ले लिए कहा है।
चलो ठीक है.. ज्यादा देर इंतजार नही करना पड़ेगा...दीवार पर टेक लेते हुए आकाश ने कहा और अपने मोबाइल फ़ोन में व्यस्त हो गया।
लगभग डेढ़ घंटे के बाद दिशा की एम०आर०आई० जांच हो गई और दोनों भाई दिशा को लेकर अस्पताल की नवीं मंजिल पर वार्ड में आ गए।
वार्ड में शाम 5 बजे से 7 बजे तक मरीजों से मिलने की अनुमति होती थी सो वार्ड में काफी लोग दिखाई पड़ रहे थे। हर मरीज के बिस्तर के पास तीन से चार लोग खड़े थे।

वार्ड में बेड के साइड कुर्सी पर बैठी माँ दिशा का इंतजार कर रही थी।.. दिशा को आता देख माँ उठ खड़ी हुई..बड़ी देर लग गई...टेस्ट हो गया??..हाँ हो गया।..माँ ने दिशा का हाथ पकड़ा और दिशा दोनों भाइयों के कंधे का सहारा ले व्हीलचेयर से बेड पर आ गई।
रात हो रही थी..वार्ड से मरीजों से मिलने वालों की संख्या घटने लगी और अब मरीज के साथ केवल एक ही व्यक्ति को रुकने की इजाज़त थी सो माँ ने दोनों भाइयों को बाहर वेटिंग हाल में आराम करने ले लिए कहा।

माँ की अनुमति पा दोनों भाई जाने लगे तो दिशा चहकी..अरे रुको..निकालो अपना आई फोन और मेरी एक अच्छी से फ़ोटो खींचो मुझे फेसबुक पर लगाना है..कमीने दोस्तों को पता तो चले कि मैं किस हाल में...मैंने बोलना क्या बंद किया लोगों ने मेरी खबर भी नही ली..आकाश ने अपना आई फ़ोन निकाला और दिशा की ओर बढ़ा दिया। दिशा ने हाथ में लगी कैनुला को आगे करते हुए एक सेल्फी ली और फेसबुक पर आँसू टपकाती इमोजी के साथ स्टेटस अपडेट कर दिया...फीलिंग सिक इन हॉस्पिटल।
हे भगवान ये मुटुई भी...आकाश प्यार से दिशा को मुटुई कहता था।
दिशा से जब भी लड़ाई होती दिशा आकाश को मोटी कहता और दिशा गुस्सा कर छोटुई कह देती...मैं छोटुई तो तुम मुटुई...इस नोंक झोंक में आकाश ने दिशा का नामकरण मुटुई कर दिया।
ये नाम भी स्नेह का एक प्रतीक बन जायेगा कौन जानता था।
दिशा आकाश को आई फोन दे दो और तुम भी आराम करो ज्यादा आंख न गड़ाओ..माँ ने कहा तो दिशा ने आकाश को आई फोन देते हुए कहा...लो ले जाओ अपना आई फ़ोन ... अब मैं अपने फोन से काम चला लूँगी।
आकाश और पूरब वेटिंग रूम में आ गए और चटाई बिछा कर आराम फरमाने लगे।
दिन भर अस्पताल में भागा दौड़ी करने के बाद दोनों को कब नींद आ गई पता ही नही चला।
अचानक आकाश की नींद खुली तो उसे लगा कि जैसे कोई उसकी जेब से कुछ निकाल ले गया। उसने जेब मे हाथ डाला तो हैरान रह गया..मेरा आई फोन कहाँ चला गया..भईया देखो तुम्हारे पास है क्या?..पूरब चौंक कर उठा और बोला मैंने कब लिया था वो तो तुम्हारे पास था ना...
अरे यार..लगता है कोई जेब निकाल ले गया..। ये कैसे हो सकता है..अरे नहीं.. यह कहकर पूरब ने वेटिंग रूम में चारो तरफ नजर दौड़ाई तो कोई जागता दिखाई न दिया.... सभी लोग सो रहे थे..वेटिंग रूम में दीवार पर चिपका फ्लैक्स नोट पंखे की हवा से फड़फड़ा रहा था जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा था- जेबकतरों और चोरों से सावधान।
आकाश और पूरब दौड़कर अस्पताल के कंट्रोल रूम में गए और वहाँ मौजूद सिक्योरिटी इंचार्ज को फोन चोरी होने की रिपोर्ट की।सिक्योरिटी इंचार्ज ने वार्ड के वेटिंग हाल में जाकर लोगों से औपचारिक पूछ ताछ की और उँघते हुए कहा... जब इतना महंगा फ़ोन रखते हो तो उसकी सुरक्षा भी करनी चाहिए...आखिर गंवा दिया ना...अब नही मिलने वाला तुम्हारा फोन..जाओ पुलिस थाने में रिपोर्ट करा दो।मिलना होगा तो मिल जाएगा कभी...
सुबह के आठ बजे चुके थे। ओपीडी शुरू होने वाली थी। पलक झपकते ही पूरा अस्पताल मरीजों की भीड़ से भर गया।
चलो चोरी हो गया सो हो गया...अब छोड़ो...चलो दिशा के पास चलते हैं डॉक्टर साहब राउंड पर आने वाले होंगे..फोन का क्या है फिर ले लेंगे..पूरब ने आकाश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा...और फिर दोनों भाई वार्ड में दिशा के पास पहुँच गए।
माँ दिशा को नाश्ता खिला रही थी।नर्स ने आकर डाइट चार्ट से डाइट की रिपोर्ट ली,इंजेक्शन लगाया और बोली..अब कैसी हालत है बेटू.. कोई परेशानी तो नही...कोई परेशानी हो तो बताना...टाइम से डाइट लेते रहना और खुश रहना अगर अस्पताल से जल्दी छुट्टी चाहिए तो..
थोड़ी देर में डॉक्टर्स की टीम आ गई... प्रो० डॉ० मिश्रा ने सारी रिपोर्ट को देखने के बाद डॉक्टर दानिश और डॉक्टर लतिका से कुछ डिसकशन किया और पूरब कहा...फेफड़ों में संक्रमण काफी है और कम से 20 दिनों तक मेडिकल सुपरविजन में इलाज होगा उसके बाद स्थिति सामान्य होने पर अस्पताल से छुट्टी मिलेगी तब तक नियमित रूप से कई टेस्ट किये जायेंगे।
दिशा बेटा.. डरना नहीं.. जल्दी ठीक हो जाओगी।
डॉक्टर दानिश ने पूरब को कुछ पेपर देते हुए कहा..ये टेस्ट डेली सुबह शाम किये जायेंगे..इसके लिए आपको पेशेंट का ब्लड सैम्पल ले जा कर दूसरे फ्लोर पर टेस्ट लैब में देना होगा और ध्यान रहे ज्यादा टाइम मत लगाना नही तो सैंपल खराब हो जाएगा।..
इलाज चलता रहा...दोनों भाई पूरी तन्मयता से दिशा की देखभाल में लग गए...डेली सारे टेस्ट  सैंपल समय से लैब में ले जाते..माँ के साथ बारी बारी से दिशा के पास बैठकर दिशा का हौंसला बढ़ाते.. दिशा भी पूरी हिम्मत से खुद को सामान्य और स्वस्थ रखने का पूरा प्रयास करती।
दिन प्रतिदिन दिशा की हालत में सुधार होने लगा।
वेटिंग हाल में बैठे हुए आकाश ने पूरब ने कहा..मुटुई की हालत में सुधार है ना अब..
हाँ अब काफी सुधार है..भगवान की कृपा से सब ठीक है..बस तुम्हारा फोन चोरी हो गया ये गलत हुआ..
आई फोन ढूंढा जा सकता है... मैने उसमें लोकेशन ऑन कर रखी है अगर स्विच ऑफ नही हुआ होगा तो हम उसे ट्रैक कर सकते हैं...मन में कोई योजना बनाते हुए आकाश ने पूरब से कहा... चलो भईया सिक्योरटी इंचार्ज के पास.. मैं अपने दोस्त सिद्धार्थ से कहता हूँ वो अपने कंप्यूटर से मेरी आई फोन आई०डी० लॉगिन करके उसकी लोकेशन बताए अगर मेरा फोन अभी भी अस्पताल में ही है तो हम सिक्योरटी इंचार्ज और गॉर्ड के साथ उसे ढूंढ सकते है..
क्या ऐसा हो सकता है...चलो फिर..
दोनों भाई सिक्योरिटी इंचार्ज के पास और सारी बात बताई और समझाने की कोशिश की फोन की लोकेशन अभी भी अस्पताल में ही ट्रेस हो रही है.. सिक्युरिटी इंचार्ज फोन लोकेशन को ट्रेस करते हुए पूरे अस्पताल के प्रांगण में छान बीन करने लगे..लेकिन फोन की लोकेशन लगातार बदल रही थी इस कारण उसको ढूंढ पाना मुश्किल हो रहा था।
पूरे अस्पताल में यह चर्चा का विषय बन गया कि कोई फोन चोरी हो गया है और दूसरे फ़ोन से उसकी लोकेशन ट्रेस की जा रही है।
अस्पताल के सुरक्षा गार्ड भी इस नए कौतूहल से रोमांचित थे।
आखिर दो दिनों के बाद आखिर फोन की लोकेशन कुछ समय के लिए एक स्थान पर लोकेट होने लगा।
...यह तो सर्वेंट कैम्पस का लोकेशन है..यहाँ बातों सभी रेजिडेंट डॉक्टर्स के सर्वेंट रहते हैं...एक सुरक्षा गार्ड ने कहा...
और सभी लोग उत्सुकता से सर्वेंट कैम्पस की ओर भागे..
ट्रेस लोकेशन पर पहुँच कर वहाँ के लोगों से पूछ ताछ की गई..पर सबने अनभिज्ञता जताते हुए इनकार कर दिया।
सुरक्षा गार्ड ने तलाशी ली...गमले,बर्तन,बिस्तर, आलमारी सब जगह देखा और कड़ाई से सभी नौकरों से बात चीत की लेकिन कोई सफलता नही मिली...फोन की लोकेशन मिलने के बाद भी उसे पाया नही जा सका।
निराश होकर सभी लोग वापस आ गए...
छोड़ो भाई अब ...और अधिक परेशान होने की जरूरत नही है..कल दिशा की अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी..चलो जो हो गया सो हो गया..फोन ही तो है..अपनी मुटुई ठीक है और क्या चाहिए..अब फोन की चिंता छोड़ो...।
पूरब ने आकाश से कहा और दोनों भाई वापस वार्ड में दिशा के पास आ गए...।
आ गए तुम लोग...कल सुबह ही दिशा को डिस्चार्ज कर देंगे..तुम दोनों भाइयों ने काफी भाग दौड़ कर ली है..अब कुछ देर दिशा के साथ बैठो....।
आकाश दिशा और पूरब ने दिन भर की आप बीती एक दूसरे से साझा की और अस्पताल के दर्द भरे माहौल में खुशियों की भीनी खुशबू उड़ेल दी।
रात के 12 बज चुके थे..वेटिंग हाल मेंं खामोशी पसर चुकी थी...पूरब और आकाश भी सोने की तैयारी कर रहे थे... भईया दिशा की बीमारी का असर बढ़ता जा रहा है..अभी तो वह ठीक हो गई है लेकिन ज्यादा दिन ठीक नही रह पाएगी..और बार बार संक्रमण के कारण उसका शरीर कमजोर होता जा रहा है..वो कहती नही है लेकिन उसका मन भी भीतर से बहुत अधिक व्यथित है...जानता हूँ छोटे...लेकिन हमें उसका हौंसला टूटने नहीं देना है..वह जितना हृदय से स्वस्थ और मजबूत रहेगी उतना शरीर से भी...हम लोग जितना उसे खुश रख सके उतना ठीक है।..हाँ भईया डॉक्टर साहब भी यही कह रह थे...। यह कहकर आकाश अचानक से चुप हो गया। पूरब भी शांत हो विचारों की गहराइयों में खो गया। नींद ने वेटिंग हाल में खामोशी बिखेर दी। खुलें आसमान से मद्धिम चाँदनी खिड़की से वेटिंग हाल में हल्की रोशनी बरकरार रखे हुई थी। हवा में हल्की ठंडक शरीर में सिरहन पैदा कर रही थी जिसके कारण आकाश पूरी तरह से नींद में नही पाया था। अचानक उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके ऊपर कोई चीज रख गया हो।फिर भी कोई सपना समझ कर उसने आँख नही खोली।लेकिन फिर उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसके हाथों में कोई चीज अचानक से आ गई हो...हड़बड़ा कर वह उठा तो वह हैरान रह गया...उसके हाथ में उसका आई फोन था जो कुछ दिन पहले चोरी हो गया था...उसे कुछ समझ नही आया कि आखिर माजरा क्या है...क्या फोन चुराने वाले खुद उसका फोन वापस रख गया..उसने पूरब को जगाया...भईया देखो ..मेरा आई फोन ...ये पता नही कौन मेरे हाथ में दे गया..पूरब भी यह देख आश्चर्य में पड़ गया...चलो सिक्योरिटी रूम में बता कर आते है...। सिक्योरिटी गार्ड भी यह जान कर हैरान हो उठे कि यह कमाल तो पहली बार हुआ है कि चोरी हुआ समान अपने आप वापस मिल गया हो...।

आई फोन की सिक्योरिटी और लोकेशन को ट्रेस करके हमने जो छान बीन कराई थी शायद ...पकड़े जाने के डर से चोर वापस कर गया...हाँ ऐसा ही हुआ होगा..पूरब ने आकाश की बात पर सहमति जाहिर की।

पूरे पच्चीस दिन बाद आखिर दिशा को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।

पूरब माँ और आकाश दिशा को लेकर वापस इलाहाबाद आ गए। ज़िंदगी फिर से सामान्य होती नजर आ रही थी। पूरब भी दिशा की जिम्मेदारी आकाश पर छोड़ते हुए काम पर वापस जाने की तैयारी करने लगा।...अच्छा माँ अब मैं वापस काम पर जा रहा हूँ कोई दिक्कत या दिशा कोई परेशानी हो तुरंत बताना....आकाश तुम दिशा की दवाई टाइम से देते रहना...और दिशा तू भी ज्यादा उछल कूद मत करना और खाना बराबर खाते रहना...और मुझसे फोन पर बात करते रहना..जैसे हि समय मिलेगा ...मैं घर आऊँगा..ठीक है...। हाँ.. ठीक है..लेकिन जल्दी आना..मुझे तुमसे बहुत सी बात करनी होती है..सारी बातें फोन से नहीं हो सकती...नहीं तो तुम्हे बुलाने के लिए भगवान मुझे फिर से बीमार कर देंगे...भक पगलू... मैं जल्दी आऊँगा। पूरब ने दिशा को प्यार से गले लगाया और घर से बाहर निकल गया।...थोड़ी दूर जाने पर उसने पीछे मुड़कर देखा तो दिशा दरवाजे पर खड़ी उसे निहार रही थी...आज घर छोड़ते हुए पूरब की आँखे भर आई थी...पहले तो कभी ऐसा नही हुआ था...ऐसा लगा जैसे पूरब कुछ छोड़कर जा रहा था..पर क्या वह समझ नही पा रहा था...शायद उसे अपने आप पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था।

समय अपनी गति से चलता रहा...पूरब अपने काम में व्यस्त हो गया...तीन महीने गुजर चुके थे...आकाश से दिशा का हाल चाल लेकर वह अपने काम में मशगूल रहता।..दिशा से उसकी सीधी बात चीत भी कम हो गई थी।....एक दिन जब वह अपने ऑफिस में बैठा कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो अचानक उसके मोबाइल पर दिशा का मैसेज फ़्लैश हुआ..भईया तुम घर कब आओगे...तुमसे बहुत सारी बात करनी है..पूरब में रिप्लाई किया ...क्या हुआ बेटा.. बताओ..क्या बात है...नहीं तुम घर आ जाओ पहले फिर बात करेंगे...अच्छा ठीक है..पूरब ने फिर से रिप्लाई करके बात  समाप्त की।...और वापस अपने ऑफिस के काम में लग गया। लगातार तीन तक दिशा रोज पूरब से पूछती ..भईया तुम आज घर आओगे...और पूरब आफिस के कुछ जरूरी काम खत्म कर घर आने का वादा कर फिर काम में व्यस्त हो जाता।..लगभग हफ्ते भर यह सिलसिला चलता रहा।

रात के आठ बजे रहे थे पूरब ऑफिस से रूम पर आ चुका था और भोजन की तैयारी कर रहा था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी...पूरब में फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आकाश की आवाज आई...भईया जल्दी से घर आ जाओ...दिशा की हालत खराब है उसे फिर से अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है..मैंने पिता जी को बता दिया है वो भी आ रहे हैं।..ठीक है मैं आ रहा हूँ तुम फोन रखो। पूरब ने अपने ड्राइवर शमशेर को बुलाया और तुरंत इलाहाबाद के लिए निकल पड़ा।

रात के 11 बजे रहे हैं..अस्पताल के वेटिंग हाल में सन्नाटा पसर गया है।दिशा को भर्ती करनेके बाद पूरब और आकाश हाल में लेटे हुए हैं।माँ वार्ड में दिशा के पास ही बैठी है और पिता जी भी आ चुके हैं।पिता जी डॉक्टर दानिश से कुछ बात कर रहे हैं।पूरब और आकाश दिन भर के थके हुए थे सो पिता ने उन्हें जगाना जरूरी नहीं समझा। दिशा का शरीर जीर्ण और ठंडा होता जा रहा था। तभी डॉक्टर दानिश ने पिता जी से कहा ...अभी दिशा को डायलीसिस के लिए जाने होगा...मैं रजिस्ट्रेशन के लिए लिख देता हूँ आप नर्स के साथ इन्हें तुरंत डायलीसिस के लिए ले जाओ।
पिता जी ने आकाश और पूरब को जगाया और दिशा को डायलीसिस के लिए ले गए।दिशा बोल पाने में बिल्कुल असमर्थ थी...जीवन रक्षक संयंत्रों ने चारों तरफ से उसे जकड़ रखा था।डायलीसिस की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई तो पिता ने पूरब से कहा अभी लगभग 2 घंटे का समय लग जायेगा तब तक तुम वेटिंग हाल में आराम कर लूँगा। जब जरूरत होगी मैं बुला लूँगा।..अच्छा ठीक है..हम लोग वेटिंग हाल में हैं..दो घंटे बाद आ जाएंगे...बीच में कोई जरूरत हो तो आप फ़ोन करके बुला लीजियेगा..पूरब ने पिता जी से कहा और आकाश के साथ वेटिंग हाल में चला आया।

सुबह के चार बजने को थे..वेटिंग हाल में पूरब के सीने पर रखा फोन अचानक वाइब्रेट हुआ।पूरब ने उठाया तो दूसरी तरफ से पिता जी की आवाज आई...तुम दोनों जल्दी डायलिसिस रूम में आ जाओ।
पूरब ने आकाश को जगाया और दोनों डायलिसिस रूम में जा पहुँचे। पिता ने पूरब का हाथ खींच गले से लगाया और बोले..हमारी दिशा चली गई...
पूरब और आकाश की आँखों से आँसू छलछला उठे।हे ईश्वर यह कैसा वज्रपात है!..माँ रोती हुई बेहोश हो गई।आखिर क्यों..ईश्वर तू इतना निर्दयी कैसे हो सकता है..पूरब ने रोते हुए आकाश की ओर देखा.. आसमान में तेज गड़गड़ाहट हुई   और बरसात होने लगी मानो आसमान भी  दिशा के वियोग में रो पड़ा हो। अचानक पूरब के जहन में एक बात आई जिसके कारण वह दुःख के अथाह सागर में डूब गया..आकाश का आई फोन उसकी नजरों के सामने घूमने लगा मानो कह रहा हो तुम्हें दिशा के साथ की अब जरूरत नहीं थी नहीं तो तुम दोबारा उसे जरूर पा लेते।