Saturday, March 2, 2019

गुलिस्ताँ (साहित्य की फुलवारी)-मेरी नजर मे


गुलिस्ताँ (साहित्य की फुलवारी)-मेरी नजर मे

शब्द में ही फूल हैं
शब्द में कलियां भी है
शब्द में ही रास्ते हैं
शब्द में गलियां भी है
शब्द में ही है बहारें
शब्द में खिजा भी है
शब्द से ही हम सभी है
शब्द का ही गुलिस्तां है
दिल की आवाज़ को 
अब पंख दो
आबाद कर दो
नाजुक सी उमंगों की
बेखौफ परवाज़ कर दो 
इल्तेजा है मेरी यूं 
जिंदगी का हिसाब कर दो 
इस गुलिस्तां को 
एक खूबसूरत किताब कर दो।।

अस्तित्व रूप मे विद्यमान सम्पूर्ण सृष्टि  चेतना का ही स्पंदन है । चेतना का यही स्पंदन हृदय के विभिन्न भावों से अभिव्यक्त  होकर कविता का सृजन करता है। मूल रूप मे कविता मनुष्य की चेतना ही है जो प्रतिक्षण मनुष्य के हृदय से शब्द स्वरूप मे प्रस्फुटित होती रहती है । कलमकार अपने हृदय से उठते भावों को शब्दो की माला मे पिरोकर काव्य का सृजन करता है ।  क्योंकि कविता चेतना का ही प्रतिबिंब है इसलिए चैतन्य मन द्वारा रचित काव्य किसी एक व्यक्ति अथवा हृदय के नही अपितु समस्त व्यक्तियों अथवा हृदयों को आनंद प्रदान करता है जोकि काव्य की मूल भावना के साक्षी है। आदरणीय डी के निवातिया  अनुज तिवारी 'इंदवार' द्वारा संपादित काव्य संग्रह गुलिस्ताँ साहित्य की फुलवारी  देश के विभिन्न कोनो से  हिन्दी काव्याकाश पर झिलमिलाते  24 कवियों द्वारा विभिन्न विधाओं मे रचित कविताओं का अनूठा संग्रह है। 
भौतिकता की चकाचौंध मे डूबे मनुष्य को यथार्थ का आईना दिखाती हैं कवयित्री अनु महेश्वरी की सुंदर पंक्तियाँ -
"जगमगाई दुनिया देख औरों की 
मत खा जाना धोखा कभी यहाँ 
अक्सर जलती हुई शमा मे ही 
पतंगे की आहुति होती है जहाँ । "
कवयित्री फुरसत के पलों में प्रकृति के सानिध्य का स्मरण करते हुए उसके महत्व का बखान करती है
"आंगन में आती धूप से
वृक्ष की ठंडी छाँव से,
ताजी बहती हवा से
फर्क तो पड़ता है
कुछ पल के लिए ही सही
मन अपना भी खिल उठता है।"
हिंदी काव्यधारा के रीतिकाल से आधुनिक काल तक सवैया छंद में विभिन्न कवियों द्वारा कविता का सृजन होता आया है।तुलसी,रसखान सरीखे महाकवियों की परंपरा का अनुसरण करती कवि अनुज तिवारी जी के दुर्मिल सवैया की पंक्तिया हृदय को अद्भुत आनंद प्रदान करती है।
"मनमोहन सा मनमोहक सा
उर में बसगौ मेहमान सखी
सब श्याम लगै सब श्याम दिखे
सपने करुं श्याम बखान सखी।"
प्रेम अद्भुत है अलौकिक है। हृदय में प्रेम की लौ लगाने वाला शख्स दूर होकर भी सदैव हृदय में बसता है।कवयित्री काजल सोनी 'क्रान्ति' की पंक्तिया ऐसे ही अलौकिक प्रेम के प्रवाह की अभिव्यक्ति है-
"सोच रही हूँ,
क्या मैं लिख दूं 
दिल के उस अफ़साने को
ढूंढ रही हूँ अपनी खातिर 
अपने उस दीवाने को.."
मानव जीवन के संघर्ष ,पीड़ा और दुखों की पड़ताल करती पंजाब के आदरणीय श्री चन्दर मोहन शर्मा जी की कविता निष्पक्ष रूप से प्रश्न करती है-
"क्यों जाने कोई पीड़ पराई
दिल की आग हमने खुद लगाई
खुद ही जख्म कुरेदे हमने
खुद ही नमक की परत बिछाई..."
बदलते परिवेश और जीवन के सामाजिक और नैतिक मूल्यों के पतन पर करारा प्रहार करते हुए कवि लिखते हैं-
"चल चलें दिल कोई जंगल
कुछ जहाँ सुकूँ तो मिले.."
अन्न जीवन का आधार है,किन्तु कृषि प्रधान होते हुए भी हमारे देश मे किसानों की दशा ठीक नही रही है।कभी मौसम,कभी दैवीय आपदाओं तो कभी सरकारी नीतियों की अनदेखी की मार झेल रहे किसानों की वेदना भला भला कवि के हृदय को कैसे न झकझोरती-
"कृषक बेचारा सिसक रहा है खेतों औ खलिहानों में
सदा सूखती जाती फसले देखो आज सिवानो में।"
किसानों की पीड़ा को अपनी रचना में व्यक्त करते डॉ छोटे लाल सिंह जी उम्मीद नही खोते है। निश्चय ही वक्त बदलेगा-
"खेतों औ खलिहानों में जब वापस बाहर आएगी
कोना कोना जगमग होगा किस्मत ही खुल जाएगी।"
कवि के सुख के दोहे आध्यात्मिक आनंद का संदेश है।
"दुख की चिंता है नही, सुख में कटती रात
जो दुख में चिंता करे,बन जाती है बात।"
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"सुख की आंधी जब चले, सुखमय हो संसार
तिनका तिनका उड़ चला,दुख का खर पतवार।"
पुरुष प्रधान समाज मे नारी के समान अस्तित्व को स्थापित करती बेटियों का उत्साह वर्धन करती कविता की पंक्तिया काव्य संग्रह की स्वर्णिम उपलब्धि है।-
"बदल रही परिवेश बेटियां, करके अद्भुत काम
विश्व पटल पर आगे आकर रोशन करती नाम।"
नारी की दशा का चिंतन करते हुए काव्य संग्रह के मुख्य संपादक आदरणीय निवातिया जी लिखते हैं-
"हे भारत की नारी,क्या दशा हुई तुम्हारी
तेरे आने की आहट से सहमी है जग जननी नारी.."
अपने अस्तित्व को तलाशती बेटी मां से प्रश्न करती है
"क्यों कहती माँ तुम बेटा मुझको,
क्यों मेरी पहचान मिटाती हो.."
नारी सशक्तीकरण और जीवन के विभिन्न उतार चढ़ावों के मध्य मिट्टी की खुशबू समेटे भारत माँ की पीड़ा भी कवि के हृदय से अछूती नही है-
"जंजीरों में जकड़ी हूँ
मैं भारत माता बोल रही हूँ.."
फागुन प्रेम का मधुमास है। होली में प्रियतम को पुकारती श्री देवेंद्र सगर'सागर'की रचना प्रेम और होली के अनुपम संयोग की सुंदर कृति है-
"एक त्योहार मोहब्बत का होली
होली में मुझको गले लगाओ ना 
सजना होली में तुम आओ ना.."
श्रम मनुष्य का वह आभूषण है जो तकदीर बदल देता है। उदाहरण स्वरूप पंक्तिया-
"गरीब में हूँ
हूँ नही मैं कर्म हीन
ना हूँ बेचारा
बदलेगा जरूर 
मेहनत से 
कभी भाग्य हमारा।.."
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"फिर से हर रोज उगने वाला
सूरज बन तू ढलता चल
किस्मत की लकीरों को न देख
मेहनत से हथेली मलता चल।"
कवि अतीत को भूल आने वाले दिनों में खुशियों की उम्मीद करता है-
"शिकवा न करो ए दर्द -ए -दिल
वो वक्त भी एक दिन आएगा
खुशियां ही खुशियां  होगी
तू गीत अमन के गायेगा।"
बसंत ऋतु के आगमन की मनमोहक छटा का वर्णन करते हुए प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम चित्रण है कुशल कवि श्री दुष्यंत कुमार पटेल की पंक्तिया-
"सरसों से पुष्पित है बाड़ी, बौरों से महकी अमराई,
चले गीत गाते पुरवैया, कोयल कूके मधु ऋतु आई।"
सुख,श्रृंगार और वैभव में डूबे कवि को कवि के हृदय से ही आवाज आती है
"कवि जी मैं आपका करता हूँ आह्वान"
स्वंय की यात्रा में स्वयं को खोजते कवि श्री नरेन्द्र कुमार का चिंतन ही उनकी काव्य रचना का आधार है-
"कहाँ से आया,कौन है लाया
किसलिए मुझे है बनाया,
इस बात पर सभी हैं मौन
में हूँ कौन...!!"
जीवन यात्रा के पड़ाव को प्रतीक रूप में नदी से निरूपित करते हुए कवयित्री प्रियंका जी कहती हैं कि जीवन का निरंतर प्रवाह ही सृष्टि है। ठहराव के साथ ही सब कुछ शून्य में विलीन हो जाता है।
"जब ठहरती है नदी
एक पल को ठहर जाता है उसके संग
निरंतर हांफती हुई हवा का तेज
सदियों से रुंआसा खड़े नग का हठ
भूमिका से भरे नभ का विषय..."
हृदय सिंधु के गहरे अंतर में छिपे भावों की सुंदर मोती माला है प्रियंका जी की कविताएं।
भीतर की यात्रा में दूर निकलकर ही ऐसी रचनाये हो सकती है-
"क्या तुमने पुकारा था?
शायद कभी नही,
मैंने सुनी..
अपनी भ्रमित इच्छाएँ..।।"
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"बारिश का रोना 
धरा का पसीजना,
दो सखियों के विलाप का
एक दूसरे में घुलना है...।।"
काव्य की विभिन्न विधाओं में निपुण आदरणीय कवि श्री विंदेश्वर प्रसाद शर्मा की रचनाएं संग्रह की अमूल्य निधि है-
"धन दौलत जाती नही, खाली रहता हाथ
फिर भी इनकी लालसा,रहे सभी के साथ।"
कवि समस्याओं पर बहस नही बल्कि समाधान की बात करते हैं-
"न समझो न समझाने की बात करो,
लगी है आग उसे बुझाने की बात करो।"
जिंदगी के सफर में रिश्तों की बदलती परिस्थितियों पर कवयित्री भावना कुमारी जी का गहन चिंतन है-
"जिंदगी के सफर में मैंने देखा है बहुत कुछ.."
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"सूखे पत्तों की तरह आज हर रिश्ता 
धीरे धीरे धराशायी होता जा रहा है।"
ऋतंभरा साहित्य सम्मान,साहित्य समागम सम्मान,आंचलिक साहित्य गौरव जैसे साहित्य सेवा के कई सम्मान हासिल कर चुकी छत्तीसगढ़ की कवयित्री श्रीमती मधु तिवारी हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा मे कविता की स्वर्णिम हस्ताक्षर है।
"सुनाती हूँ मैं खरी खरी
अभिशाप है ये भुखमरी.."
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"की मेरी जब से विदाई माँ
कभी हक न तब से जमाई माँ.."
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लोकतंत्र का वर्णन करती सुंदर पंक्तिया-
"हो सत्ता का शासन
विपक्ष करे अनुशासन 
होय जिसका मूल मंत्र
वही होता लोक तंत्र।"
सच्चे मित्र की पहचान कराती कवयित्री की कविता एक संदेश है-
"कैसा हो मित्र पर सवाल होना चाहिए
दोस्ती का भाव बेमिसाल होना चाहिए"
आज समाज के प्रत्येक स्तर पर जब मूल्यों मे गिरावट आई है तो काव्य जगत भी इससे अछूता नहीं है। गीतों गजलों  और शेरो शायरी  मे स्तरीय सृजन का अभाव दिखाई पड़ता है । ऐसे मे आदरणीय मनिंदर सिंह 'मनी' की गजलों को पढ़कर पतझड़ मे बसंत का एहसास होता है। उनकी रचनाओं मे संजीदगी है जो सच का आईना दिखाती है और झूठ और दिखावे से दूर व्यवहारिकता की ओर ले जाती है-
"हर राह पोशीदा लगे दिन के उजालों मे 
आंधी चली जैसे खुदी को आजमाने मे ।"
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"रंज ओ गम के निशां दिल से मिटाकर 
फिर दिलों को घर बना रह ले जहां मे ।" 
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"लगा इल्जाम मज़हब पर बगावत कर रहे शायर 
बिना माने धर्म की क्यों शिकायत कर रहे शायर । "

अंतर्मन से फूटी काव्य धारा समाज मे व्याप्त विभिन्न विडंबनाओं,और विरोधाभासों के मध्य सत्य का चिंतन कर समाज का पथ प्रदर्शन करती है।राजस्थान की पावन धरा में जन्मी कवयित्री मीना भारद्वाज की रचनायें यथार्थ की अनोखी पड़ताल है-
"मैं तुम्हारी यशोधरा तो नही
मगर उसे कई बार जिया है"
*
"गांठे पहले भी लगती थी...
...मगर गिरहें खुलने में 
वक़्त ही कहाँ लगता था।"
पहाड़ों की खूबसूरत वादियों में सुदूर यात्रा कराती,बचपन की बेफिक्र गलियों से जिंदगी की कशमकश तक मीना जी की रचनाओं में संजीदा एहसास हैं जो बरबस ही हृदय में अभिनव भावों का संचार करती है।-
"पहाड़ों के ठाठ भी बड़े निराले हैं"
*
"बहुत बरस बीते,
बचपन वाला घर देखे,
अक्सर वह सपने में मुझसे
मिलने बतियाने आ ही जाता है।"
*

"फुरसत के लम्हे रोज रोज मिला नही करते
सूखे फूल गुलाब के फिर खिला नही करते।"
संभावनाओं के आकाश में अपने ही अनंत विस्तार की टोह लेते अंतर्मन को बाँध पाना संभव नही है।अन्तर्मन काव्यधारा में नवीन विचारों की प्रेरणा बन रचनात्मकता के नए आयाम गढ़ता है।
कवयित्री मुक्ता शर्मा की पंक्तिया ऐसी ही रचनात्मकता का सजीव उदाहरण है।-
"...मानव की रचना अजीब
यह काली कोलतार की जीभ"..
अपनी माँ के प्रति गहरे अनुराग को प्रकट करती कवयित्री बूढ़ी होती माँ के जीवन की सजीव झांकी प्रस्तुत करते हुए पारिवारिक विडंबनाओं पर व्यंग्य भी करती है-
"... रौनकें भरती थी जो, अब!
कुछ शिथिल-सी रहने लगी है,
माँ अब बूढ़ी लगने लगी है..."
*
धर्म और संप्रदाय में बंटे,द्वेष और वैमनस्य से भरे संसार को संदेश देते हुए कवयित्री कहती है-
"मैं रहीम,तू राम कोई,
मैं मुहम्मद,तू श्याम कोई,
धर्म के नाम पर न यूँ खंड किये  जाएं 
ज़हर के ये व्यापार बंद किये जाएं।.."
निरंतर लिखते रहना आदरणीया रिंकी राउत जी के लिए साधना के समान है।जीवन के उतार चढ़ाव के बीच आपकी उन्मुक्त उड़ान साहित्य जगत को आपकी ओर आकर्षित करती है।
"बंद दरवाजा देखकर,
लौटी है दुआ,.."
दर दर भटकते इंसान से कवयित्री प्रश्न करती है और आत्मवालोकन कर सटीक उत्तर देती है-
"ये सवाल जो पीछा करता है,
हर मोड़ पर पूछा करता है,
तू कौन है
तू कौन है ......"
अपनी पीड़ा, अपनी प्यास को मनमीत बना कवयित्री काव्य साधना मे प्रवृत्त है-
"खामोशी भी एक तरह की सहमति है ..."
जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण मनुष्य को हर परिस्थिति में सहज रखता है।कवि की सहजता उसकी रचनाओं में परिलक्षित होती है।
ओम साहित्य सम्मान से सम्मानित ख्याति प्राप्त युवा कवि श्री विजय कुमार नामदेव इश्क़ के एहसासात के शायर है।आपकी गजलों के अशआर बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखते है।-
" रिश्ता उनसे रोज निभाना पड़ता है
इसीलिए घर लौट के जाना पड़ता है"..
"शेर मोहब्बत के कहना आसान नही
खुद को खुद का खून पिलाना पड़ता है"
कवि प्रेम के खत लिखना चाहता है पर असमंजस में है-
"एक खत लिख तो दूँ,
तुमको मगर मैं,
क्या पता तुम पढ़ भी पाओ.."
छंदबद्ध एवं छंदमुक्त काव्य की सभी विधाओं में काव्य सृजन की महारत रखने वाले कवि श्री विजय कुमार सिंह जी ने बड़े सलीके से व्यवस्था पर तंज कसा है और उसे यथार्थ का आईना दिखाया है।-
"आजमा ले मुझको भी तू जमाने की तरह
मुस्कुरा ले मुझ पर किसी बहाने की तरह"
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जीवन यात्रा में मानव जीवन के लक्ष्य का स्मरण करते हुए कवि कहता है-
"ऋतु उदय की आई है
मन के पट खोल तू जरा-जरा.."
अपने अस्तित्व को प्रतिष्ठित कर नव उत्साह से सभी बंधनो को तोड़ नारी को प्रतिकार का आह्वाहन करती है कवि की पंक्तिया -
"तू कर प्रतिकार ! तू कर प्रतिकार !
उठ जाग प्रभात को गति दे,
न बैठ बंद कर घर के द्वार।.."
प्रेम और पीड़ा के मर्म को समेटे हिंदी गजलों में सरल और सहज प्रवाह के साथ हृदय की साकार अभिव्यक्ति है आदरणीय शिशिर कुमार गोयल'मधुकर'जी की रचनाएं।बदलते दौर में रिश्तों के बीच मोहब्बत की मखमली गर्माहट को आपने बखूबी अपनी गज़लों में उकेरा है। गज़ल में उसूल से बढ़कर उरूज़ को महत्व देना गज़ल के मूल भाव को सहेज कर रखना है। शिशिर जी की  रचनायें ऐसे ही विचारो का प्रतिनिधित्व करती है।
"तुम्हारे हुस्न के जलवे हमे अब भी सताते हैं,
हमे पर कुछ नही होता ये गैरों को जताते हैं।"
भाषा का प्रदर्शन नही,भावों का शिल्प है।ज्ञान के सागर में अनुभव का सानिध्य है।
"दो दिल जहाँ नजदीक हो,और खुल के मन की बात हो,
वो पल अगर तुम थाम लो,हर दम सुहानी रात हो।"
सकल विश्व को भारत भूमि का परिचय कराते कवि शशिकांत शांडिले जी कहते है-
"जहाँ देश को दर्जा माँ का है
जहाँ माँ को देवी कहते हैं
जहाँ भावनाओं की गंगा बहती,
उसे भारत भूमि कहते हैं।.."
कवि सतर्क रहकर दुनिया को मोहब्बत में पड़ने की सलाह देते हैं।-
"न मैंने ख्वाब देखा है न मैंने दिल लगाया है,
हकीकत जानकर मैंने मोहब्बत को भगाया है।.."
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"निगाहें तुम्हारी करे हैं इशारा,
हमे लग रहा है मगर ना-गवारा।
बड़े घाव हमने भरे हैं अभी तक
नही चाहिए अब किसी का सहारा।.."
कवि की जीवन यात्रा में अकेली कलम ही कवि की हमसफर है-
"..कलम चल रही है,
दूर तक साथ ले जाने को,
मगर साथ कौन है
कलम अकेली निभाने को।"
देश और राजनीति के पटल पर मौलिक समस्याओं की विश्लेषण कर समाधान बताती हैं कवयित्री डॉ स्वाति गुप्ता की पंक्तिया-
"खतरा मंडरा रहा है देश पर,देश के गद्दार से,
लूट रहे  खुलेआम देश को,अपनी षड्यंत्री चाल से..।"
किताबों और अपेक्षाओं के बस्ते के बोझ तले दबा बचपन ममतामयी माँ से फरियाद करता है-
"माँ मेरे बस्ते के बोझ में,मेरा बचपन दब रहा है,
मोटी मोटी किताबों से मेरा सुख चैन छिन रहा है।.."
उम्र की माने या फिर दिल की सुने,कवयित्री असमंजस में हैं और बड़ी खूबसूरती से इस असमंजस की स्थिति को कविता में अभिव्यक्त किया है-
"उम्र की माने या दिल की सुने,कुछ समझ नही आता है,
बड़े बन जाओ उम्र के साथ,ये उम्र का तकाजा है,
पर दिल कहता है बार-बार यही,बच्चा बनने में ही मजा है,
उम्र तो बढ़ती है हर दिन के साथ,इसमे क्या नया है।.."
भौतिकता की अंधी दौड़ में प्रेम को तरसते लाचार आदमी की बेबसी पर व्यंग्य करते कवि आदरणीय श्री सर्वजीत सिंह जी ने अपनी कविता में मार्मिक चित्रण किया है-
"ना जाने कहाँ खो गया,
जो प्यार था कभी दिलों में,
अब तो उलझा रहता है ये मन,
कभी टेलीफोन तो कभी बिजली के बिलों में।.."
फिल्मों,धारावाहिकों के निर्माता निर्देशक एवं कवि होने के साथ ही साथ श्री सर्वजीत जी उम्दा शायर भी हैं।आपकी शायरी दिल को प्यार से गुदगुदाते हुए छूकर निकल जाती है और मदहोश कर देती है।-
"तेरी आंखे बयाँ कर रही है,
तेरे दिल की दास्तां
के कितना तड़पाया है तुझे कल रात,
मेरी याद ने।"
**
"कई बार वो टकराये
तो मैं समझा कि मोहब्बत कर बैठे,
पर मुझे मालूम न था भटके हुए मुसाफिर हैं वो,
रस्ते की तलाश में।"

गुलिस्ताँ साहित्य की फुलवारी अपने अंक में अनेक सुमन समेटे हुए है जिनकी सुगंध हृदय को आह्लादित कर देती है।हिंदी साहित्य काव्य संकलन के मंच से कवियों को एक सूत्र में पिरोकर आदरणीय डी के निवातिया जी और अनुज तिवारी इंदवार जी ने गुलिस्ताँ को जो सौंदर्य प्रदान किया है वह अद्भुत है।गुलिस्ताँ परिवार के सभी कवियों को धन्यवाद एवं शुभकामनाएं।


-देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"