Friday, September 10, 2021

संकेत

यहाँ तो बड़ी लंबी लाइन लगी है..अपना क्या नंबर है भइया..अपना 457 है..लाइन में लगते हुए पूरब ने अपने छोटे भाई आकाश को रजिस्ट्रेशन पर्ची थमा दी।सरकारी अस्पताल में एम०आर०आई० कक्ष के बार मरीजों और उनके तीमारदारों की इतनी लंबी कतार आकाश ने पहली बार देखी थी तो विचलित होना स्वाभाविक ही था।आज तो पूरा दिन टेस्ट में लग जायेगा फिर डॉक्टर साहब आगे का इलाज कैसे शुरू करेंगे कहीं दिशा की तकलीफ और न बढ़ जाये.. चिंता मत करो..दोनों टाइम इंजेक्शन लग रहे हैं उससे दिशा को कुछ राहत है....बस आज टेस्ट हो जाये..तुमको कुछ खाना हो तो तुम बाहर से खाकर आ जाओ मैं तो लाइन में लगा ही हूँ...हाँ.. अक्कू तुम जाओ ..भईया तो है ही ना..दिशा ने धीमे स्वर में आकाश से कहा.. अच्छा ठीक है ..मैं जाता हूँ पर मेरे आने से पहले नंबर आ जाये तो घबराना नही।..इतनी बार एम०आर०आई० चुकी है,मैं नही घबराने वाली.तुम जाओ और जल्दी से खाकर आ जाओ तुमने सुबह से कुछ नही खाया है..दिशा ने आकाश को बीच में टोकते हुए कहा।
आकाश खाना खाने बाहर चला गया। पूरब अपनी छोटी बहन दिशा को व्हील चेयर पर लिए कतार में खड़ा रहा।
स्वभाव से बेहद जिंदादिल,हँसमुख और मिलनसार दिशा उम्र में पूरब से छोटी और आकाश से बड़ी थी।

लगभग 10 साल पहले एस०एल०ई० नामक असाध्य और ला इलाज बीमारी ने दिशा को अपनी चपेट में ले लिया उसके बाद अस्पताल,डॉक्टर और दवाइयों से जो नाता जुड़ा वो आज तक नही टूटा। दिन भर अपनी चहलकदमी और हंसी ठहाकों से मौसम में उल्लास और गति घोलने वाली खुद कब व्हीलचेयर पर आ गई पता ही नही चला।
पिता जी सरकारी नौकरी में थे और घर से काफी दूर दूसरे जिले में तैनात थे तो बमुश्किल से छुट्टियों में ही घर आ पाते थे ,माँ गृहणी थी इसलिए दिशा के इलाज की जिम्मेदारी दोनों भाइयों ने उठा रखी थी। गृह जनपद इलाहाबाद में बीमारी के समुचित इलाज की व्यवस्था न होने के कारण दिशा को राजधानी लखनऊ में रेफर किया गया था।अक्सर मौसम के बदलाव के साथ बीमारी का प्रभाव बढ़ता तो दिशा को अस्पताल में भर्ती करना पड़ जाता था। और एक बार जो भर्ती हुए तो महीने पंद्रह दिन लग ही जाते।इसलिए अस्पताल से घर और घर से अस्पताल आना जाना जीवन का एक अंग बन गया था।
इन सब के बावजूद भी दिशा के चेहरे की मुस्कान बनी रहती जैसे उसने दर्द को अपनाकर मुस्कुराना सीख लिया हो। बीमारी ने दिशा के शरीर को जरूर दुर्बल कर दिया था पर मन से उसने काफी हार नही मानी यही वजह थी कि कई बार कोमा जैसी स्थिति में मृत्य से साक्षात्कार करके भी वह जिंदगी का दामन थामे मुस्कुराती हुई सब को चकित कर जाती।

इस बार बरसात खत्म हुई तो मौसम के बदलाव के साथ एक बार फिर फेफड़ों में संक्रमण बढ़ने के कारण दिशा को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।
लगभग एक घंटा बीतने के बाद आकाश भोजन करके लौटा...और पानी की बोतल आगे बढ़ाते हुए बोला...ये लो भइया पानी पी लो...अभी डॉक्टर दानिश आये थे... उन्होंने जल्द ही जांच करा कर वार्ड में आने के लिए कहा है..जल्द ही दिशा का नंबर आने वाला है.. पूरब ने पानी पीने के बाद बोतल आकाश को थामते हुए कहा।
ऐसा क्यों दिशा का नंबर पहले क्यों....पता नही...उन्होंने कुछ बताया नहीं बस जांच कराकर वार्ड में आने ले लिए कहा है।
चलो ठीक है.. ज्यादा देर इंतजार नही करना पड़ेगा...दीवार पर टेक लेते हुए आकाश ने कहा और अपने मोबाइल फ़ोन में व्यस्त हो गया।
लगभग डेढ़ घंटे के बाद दिशा की एम०आर०आई० जांच हो गई और दोनों भाई दिशा को लेकर अस्पताल की नवीं मंजिल पर वार्ड में आ गए।
वार्ड में शाम 5 बजे से 7 बजे तक मरीजों से मिलने की अनुमति होती थी सो वार्ड में काफी लोग दिखाई पड़ रहे थे। हर मरीज के बिस्तर के पास तीन से चार लोग खड़े थे।

वार्ड में बेड के साइड कुर्सी पर बैठी माँ दिशा का इंतजार कर रही थी।.. दिशा को आता देख माँ उठ खड़ी हुई..बड़ी देर लग गई...टेस्ट हो गया??..हाँ हो गया।..माँ ने दिशा का हाथ पकड़ा और दिशा दोनों भाइयों के कंधे का सहारा ले व्हीलचेयर से बेड पर आ गई।
रात हो रही थी..वार्ड से मरीजों से मिलने वालों की संख्या घटने लगी और अब मरीज के साथ केवल एक ही व्यक्ति को रुकने की इजाज़त थी सो माँ ने दोनों भाइयों को बाहर वेटिंग हाल में आराम करने ले लिए कहा।

माँ की अनुमति पा दोनों भाई जाने लगे तो दिशा चहकी..अरे रुको..निकालो अपना आई फोन और मेरी एक अच्छी से फ़ोटो खींचो मुझे फेसबुक पर लगाना है..कमीने दोस्तों को पता तो चले कि मैं किस हाल में...मैंने बोलना क्या बंद किया लोगों ने मेरी खबर भी नही ली..आकाश ने अपना आई फ़ोन निकाला और दिशा की ओर बढ़ा दिया। दिशा ने हाथ में लगी कैनुला को आगे करते हुए एक सेल्फी ली और फेसबुक पर आँसू टपकाती इमोजी के साथ स्टेटस अपडेट कर दिया...फीलिंग सिक इन हॉस्पिटल।
हे भगवान ये मुटुई भी...आकाश प्यार से दिशा को मुटुई कहता था।
दिशा से जब भी लड़ाई होती दिशा आकाश को मोटी कहता और दिशा गुस्सा कर छोटुई कह देती...मैं छोटुई तो तुम मुटुई...इस नोंक झोंक में आकाश ने दिशा का नामकरण मुटुई कर दिया।
ये नाम भी स्नेह का एक प्रतीक बन जायेगा कौन जानता था।
दिशा आकाश को आई फोन दे दो और तुम भी आराम करो ज्यादा आंख न गड़ाओ..माँ ने कहा तो दिशा ने आकाश को आई फोन देते हुए कहा...लो ले जाओ अपना आई फ़ोन ... अब मैं अपने फोन से काम चला लूँगी।
आकाश और पूरब वेटिंग रूम में आ गए और चटाई बिछा कर आराम फरमाने लगे।
दिन भर अस्पताल में भागा दौड़ी करने के बाद दोनों को कब नींद आ गई पता ही नही चला।
अचानक आकाश की नींद खुली तो उसे लगा कि जैसे कोई उसकी जेब से कुछ निकाल ले गया। उसने जेब मे हाथ डाला तो हैरान रह गया..मेरा आई फोन कहाँ चला गया..भईया देखो तुम्हारे पास है क्या?..पूरब चौंक कर उठा और बोला मैंने कब लिया था वो तो तुम्हारे पास था ना...
अरे यार..लगता है कोई जेब निकाल ले गया..। ये कैसे हो सकता है..अरे नहीं.. यह कहकर पूरब ने वेटिंग रूम में चारो तरफ नजर दौड़ाई तो कोई जागता दिखाई न दिया.... सभी लोग सो रहे थे..वेटिंग रूम में दीवार पर चिपका फ्लैक्स नोट पंखे की हवा से फड़फड़ा रहा था जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा था- जेबकतरों और चोरों से सावधान।
आकाश और पूरब दौड़कर अस्पताल के कंट्रोल रूम में गए और वहाँ मौजूद सिक्योरिटी इंचार्ज को फोन चोरी होने की रिपोर्ट की।सिक्योरिटी इंचार्ज ने वार्ड के वेटिंग हाल में जाकर लोगों से औपचारिक पूछ ताछ की और उँघते हुए कहा... जब इतना महंगा फ़ोन रखते हो तो उसकी सुरक्षा भी करनी चाहिए...आखिर गंवा दिया ना...अब नही मिलने वाला तुम्हारा फोन..जाओ पुलिस थाने में रिपोर्ट करा दो।मिलना होगा तो मिल जाएगा कभी...
सुबह के आठ बजे चुके थे। ओपीडी शुरू होने वाली थी। पलक झपकते ही पूरा अस्पताल मरीजों की भीड़ से भर गया।
चलो चोरी हो गया सो हो गया...अब छोड़ो...चलो दिशा के पास चलते हैं डॉक्टर साहब राउंड पर आने वाले होंगे..फोन का क्या है फिर ले लेंगे..पूरब ने आकाश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा...और फिर दोनों भाई वार्ड में दिशा के पास पहुँच गए।
माँ दिशा को नाश्ता खिला रही थी।नर्स ने आकर डाइट चार्ट से डाइट की रिपोर्ट ली,इंजेक्शन लगाया और बोली..अब कैसी हालत है बेटू.. कोई परेशानी तो नही...कोई परेशानी हो तो बताना...टाइम से डाइट लेते रहना और खुश रहना अगर अस्पताल से जल्दी छुट्टी चाहिए तो..
थोड़ी देर में डॉक्टर्स की टीम आ गई... प्रो० डॉ० मिश्रा ने सारी रिपोर्ट को देखने के बाद डॉक्टर दानिश और डॉक्टर लतिका से कुछ डिसकशन किया और पूरब कहा...फेफड़ों में संक्रमण काफी है और कम से 20 दिनों तक मेडिकल सुपरविजन में इलाज होगा उसके बाद स्थिति सामान्य होने पर अस्पताल से छुट्टी मिलेगी तब तक नियमित रूप से कई टेस्ट किये जायेंगे।
दिशा बेटा.. डरना नहीं.. जल्दी ठीक हो जाओगी।
डॉक्टर दानिश ने पूरब को कुछ पेपर देते हुए कहा..ये टेस्ट डेली सुबह शाम किये जायेंगे..इसके लिए आपको पेशेंट का ब्लड सैम्पल ले जा कर दूसरे फ्लोर पर टेस्ट लैब में देना होगा और ध्यान रहे ज्यादा टाइम मत लगाना नही तो सैंपल खराब हो जाएगा।..
इलाज चलता रहा...दोनों भाई पूरी तन्मयता से दिशा की देखभाल में लग गए...डेली सारे टेस्ट  सैंपल समय से लैब में ले जाते..माँ के साथ बारी बारी से दिशा के पास बैठकर दिशा का हौंसला बढ़ाते.. दिशा भी पूरी हिम्मत से खुद को सामान्य और स्वस्थ रखने का पूरा प्रयास करती।
दिन प्रतिदिन दिशा की हालत में सुधार होने लगा।
वेटिंग हाल में बैठे हुए आकाश ने पूरब ने कहा..मुटुई की हालत में सुधार है ना अब..
हाँ अब काफी सुधार है..भगवान की कृपा से सब ठीक है..बस तुम्हारा फोन चोरी हो गया ये गलत हुआ..
आई फोन ढूंढा जा सकता है... मैने उसमें लोकेशन ऑन कर रखी है अगर स्विच ऑफ नही हुआ होगा तो हम उसे ट्रैक कर सकते हैं...मन में कोई योजना बनाते हुए आकाश ने पूरब से कहा... चलो भईया सिक्योरटी इंचार्ज के पास.. मैं अपने दोस्त सिद्धार्थ से कहता हूँ वो अपने कंप्यूटर से मेरी आई फोन आई०डी० लॉगिन करके उसकी लोकेशन बताए अगर मेरा फोन अभी भी अस्पताल में ही है तो हम सिक्योरटी इंचार्ज और गॉर्ड के साथ उसे ढूंढ सकते है..
क्या ऐसा हो सकता है...चलो फिर..
दोनों भाई सिक्योरिटी इंचार्ज के पास और सारी बात बताई और समझाने की कोशिश की फोन की लोकेशन अभी भी अस्पताल में ही ट्रेस हो रही है.. सिक्युरिटी इंचार्ज फोन लोकेशन को ट्रेस करते हुए पूरे अस्पताल के प्रांगण में छान बीन करने लगे..लेकिन फोन की लोकेशन लगातार बदल रही थी इस कारण उसको ढूंढ पाना मुश्किल हो रहा था।
पूरे अस्पताल में यह चर्चा का विषय बन गया कि कोई फोन चोरी हो गया है और दूसरे फ़ोन से उसकी लोकेशन ट्रेस की जा रही है।
अस्पताल के सुरक्षा गार्ड भी इस नए कौतूहल से रोमांचित थे।
आखिर दो दिनों के बाद आखिर फोन की लोकेशन कुछ समय के लिए एक स्थान पर लोकेट होने लगा।
...यह तो सर्वेंट कैम्पस का लोकेशन है..यहाँ बातों सभी रेजिडेंट डॉक्टर्स के सर्वेंट रहते हैं...एक सुरक्षा गार्ड ने कहा...
और सभी लोग उत्सुकता से सर्वेंट कैम्पस की ओर भागे..
ट्रेस लोकेशन पर पहुँच कर वहाँ के लोगों से पूछ ताछ की गई..पर सबने अनभिज्ञता जताते हुए इनकार कर दिया।
सुरक्षा गार्ड ने तलाशी ली...गमले,बर्तन,बिस्तर, आलमारी सब जगह देखा और कड़ाई से सभी नौकरों से बात चीत की लेकिन कोई सफलता नही मिली...फोन की लोकेशन मिलने के बाद भी उसे पाया नही जा सका।
निराश होकर सभी लोग वापस आ गए...
छोड़ो भाई अब ...और अधिक परेशान होने की जरूरत नही है..कल दिशा की अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी..चलो जो हो गया सो हो गया..फोन ही तो है..अपनी मुटुई ठीक है और क्या चाहिए..अब फोन की चिंता छोड़ो...।
पूरब ने आकाश से कहा और दोनों भाई वापस वार्ड में दिशा के पास आ गए...।
आ गए तुम लोग...कल सुबह ही दिशा को डिस्चार्ज कर देंगे..तुम दोनों भाइयों ने काफी भाग दौड़ कर ली है..अब कुछ देर दिशा के साथ बैठो....।
आकाश दिशा और पूरब ने दिन भर की आप बीती एक दूसरे से साझा की और अस्पताल के दर्द भरे माहौल में खुशियों की भीनी खुशबू उड़ेल दी।
रात के 12 बज चुके थे..वेटिंग हाल मेंं खामोशी पसर चुकी थी...पूरब और आकाश भी सोने की तैयारी कर रहे थे... भईया दिशा की बीमारी का असर बढ़ता जा रहा है..अभी तो वह ठीक हो गई है लेकिन ज्यादा दिन ठीक नही रह पाएगी..और बार बार संक्रमण के कारण उसका शरीर कमजोर होता जा रहा है..वो कहती नही है लेकिन उसका मन भी भीतर से बहुत अधिक व्यथित है...जानता हूँ छोटे...लेकिन हमें उसका हौंसला टूटने नहीं देना है..वह जितना हृदय से स्वस्थ और मजबूत रहेगी उतना शरीर से भी...हम लोग जितना उसे खुश रख सके उतना ठीक है।..हाँ भईया डॉक्टर साहब भी यही कह रह थे...। यह कहकर आकाश अचानक से चुप हो गया। पूरब भी शांत हो विचारों की गहराइयों में खो गया। नींद ने वेटिंग हाल में खामोशी बिखेर दी। खुलें आसमान से मद्धिम चाँदनी खिड़की से वेटिंग हाल में हल्की रोशनी बरकरार रखे हुई थी। हवा में हल्की ठंडक शरीर में सिरहन पैदा कर रही थी जिसके कारण आकाश पूरी तरह से नींद में नही पाया था। अचानक उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके ऊपर कोई चीज रख गया हो।फिर भी कोई सपना समझ कर उसने आँख नही खोली।लेकिन फिर उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसके हाथों में कोई चीज अचानक से आ गई हो...हड़बड़ा कर वह उठा तो वह हैरान रह गया...उसके हाथ में उसका आई फोन था जो कुछ दिन पहले चोरी हो गया था...उसे कुछ समझ नही आया कि आखिर माजरा क्या है...क्या फोन चुराने वाले खुद उसका फोन वापस रख गया..उसने पूरब को जगाया...भईया देखो ..मेरा आई फोन ...ये पता नही कौन मेरे हाथ में दे गया..पूरब भी यह देख आश्चर्य में पड़ गया...चलो सिक्योरिटी रूम में बता कर आते है...। सिक्योरिटी गार्ड भी यह जान कर हैरान हो उठे कि यह कमाल तो पहली बार हुआ है कि चोरी हुआ समान अपने आप वापस मिल गया हो...।

आई फोन की सिक्योरिटी और लोकेशन को ट्रेस करके हमने जो छान बीन कराई थी शायद ...पकड़े जाने के डर से चोर वापस कर गया...हाँ ऐसा ही हुआ होगा..पूरब ने आकाश की बात पर सहमति जाहिर की।

पूरे पच्चीस दिन बाद आखिर दिशा को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।

पूरब माँ और आकाश दिशा को लेकर वापस इलाहाबाद आ गए। ज़िंदगी फिर से सामान्य होती नजर आ रही थी। पूरब भी दिशा की जिम्मेदारी आकाश पर छोड़ते हुए काम पर वापस जाने की तैयारी करने लगा।...अच्छा माँ अब मैं वापस काम पर जा रहा हूँ कोई दिक्कत या दिशा कोई परेशानी हो तुरंत बताना....आकाश तुम दिशा की दवाई टाइम से देते रहना...और दिशा तू भी ज्यादा उछल कूद मत करना और खाना बराबर खाते रहना...और मुझसे फोन पर बात करते रहना..जैसे हि समय मिलेगा ...मैं घर आऊँगा..ठीक है...। हाँ.. ठीक है..लेकिन जल्दी आना..मुझे तुमसे बहुत सी बात करनी होती है..सारी बातें फोन से नहीं हो सकती...नहीं तो तुम्हे बुलाने के लिए भगवान मुझे फिर से बीमार कर देंगे...भक पगलू... मैं जल्दी आऊँगा। पूरब ने दिशा को प्यार से गले लगाया और घर से बाहर निकल गया।...थोड़ी दूर जाने पर उसने पीछे मुड़कर देखा तो दिशा दरवाजे पर खड़ी उसे निहार रही थी...आज घर छोड़ते हुए पूरब की आँखे भर आई थी...पहले तो कभी ऐसा नही हुआ था...ऐसा लगा जैसे पूरब कुछ छोड़कर जा रहा था..पर क्या वह समझ नही पा रहा था...शायद उसे अपने आप पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था।

समय अपनी गति से चलता रहा...पूरब अपने काम में व्यस्त हो गया...तीन महीने गुजर चुके थे...आकाश से दिशा का हाल चाल लेकर वह अपने काम में मशगूल रहता।..दिशा से उसकी सीधी बात चीत भी कम हो गई थी।....एक दिन जब वह अपने ऑफिस में बैठा कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो अचानक उसके मोबाइल पर दिशा का मैसेज फ़्लैश हुआ..भईया तुम घर कब आओगे...तुमसे बहुत सारी बात करनी है..पूरब में रिप्लाई किया ...क्या हुआ बेटा.. बताओ..क्या बात है...नहीं तुम घर आ जाओ पहले फिर बात करेंगे...अच्छा ठीक है..पूरब ने फिर से रिप्लाई करके बात  समाप्त की।...और वापस अपने ऑफिस के काम में लग गया। लगातार तीन तक दिशा रोज पूरब से पूछती ..भईया तुम आज घर आओगे...और पूरब आफिस के कुछ जरूरी काम खत्म कर घर आने का वादा कर फिर काम में व्यस्त हो जाता।..लगभग हफ्ते भर यह सिलसिला चलता रहा।

रात के आठ बजे रहे थे पूरब ऑफिस से रूम पर आ चुका था और भोजन की तैयारी कर रहा था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी...पूरब में फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आकाश की आवाज आई...भईया जल्दी से घर आ जाओ...दिशा की हालत खराब है उसे फिर से अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है..मैंने पिता जी को बता दिया है वो भी आ रहे हैं।..ठीक है मैं आ रहा हूँ तुम फोन रखो। पूरब ने अपने ड्राइवर शमशेर को बुलाया और तुरंत इलाहाबाद के लिए निकल पड़ा।

रात के 11 बजे रहे हैं..अस्पताल के वेटिंग हाल में सन्नाटा पसर गया है।दिशा को भर्ती करनेके बाद पूरब और आकाश हाल में लेटे हुए हैं।माँ वार्ड में दिशा के पास ही बैठी है और पिता जी भी आ चुके हैं।पिता जी डॉक्टर दानिश से कुछ बात कर रहे हैं।पूरब और आकाश दिन भर के थके हुए थे सो पिता ने उन्हें जगाना जरूरी नहीं समझा। दिशा का शरीर जीर्ण और ठंडा होता जा रहा था। तभी डॉक्टर दानिश ने पिता जी से कहा ...अभी दिशा को डायलीसिस के लिए जाने होगा...मैं रजिस्ट्रेशन के लिए लिख देता हूँ आप नर्स के साथ इन्हें तुरंत डायलीसिस के लिए ले जाओ।
पिता जी ने आकाश और पूरब को जगाया और दिशा को डायलीसिस के लिए ले गए।दिशा बोल पाने में बिल्कुल असमर्थ थी...जीवन रक्षक संयंत्रों ने चारों तरफ से उसे जकड़ रखा था।डायलीसिस की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई तो पिता ने पूरब से कहा अभी लगभग 2 घंटे का समय लग जायेगा तब तक तुम वेटिंग हाल में आराम कर लूँगा। जब जरूरत होगी मैं बुला लूँगा।..अच्छा ठीक है..हम लोग वेटिंग हाल में हैं..दो घंटे बाद आ जाएंगे...बीच में कोई जरूरत हो तो आप फ़ोन करके बुला लीजियेगा..पूरब ने पिता जी से कहा और आकाश के साथ वेटिंग हाल में चला आया।

सुबह के चार बजने को थे..वेटिंग हाल में पूरब के सीने पर रखा फोन अचानक वाइब्रेट हुआ।पूरब ने उठाया तो दूसरी तरफ से पिता जी की आवाज आई...तुम दोनों जल्दी डायलिसिस रूम में आ जाओ।
पूरब ने आकाश को जगाया और दोनों डायलिसिस रूम में जा पहुँचे। पिता ने पूरब का हाथ खींच गले से लगाया और बोले..हमारी दिशा चली गई...
पूरब और आकाश की आँखों से आँसू छलछला उठे।हे ईश्वर यह कैसा वज्रपात है!..माँ रोती हुई बेहोश हो गई।आखिर क्यों..ईश्वर तू इतना निर्दयी कैसे हो सकता है..पूरब ने रोते हुए आकाश की ओर देखा.. आसमान में तेज गड़गड़ाहट हुई   और बरसात होने लगी मानो आसमान भी  दिशा के वियोग में रो पड़ा हो। अचानक पूरब के जहन में एक बात आई जिसके कारण वह दुःख के अथाह सागर में डूब गया..आकाश का आई फोन उसकी नजरों के सामने घूमने लगा मानो कह रहा हो तुम्हें दिशा के साथ की अब जरूरत नहीं थी नहीं तो तुम दोबारा उसे जरूर पा लेते।