Monday, February 13, 2023

कोरी गप्प/बंडलबाजी

कोरी गप्प/बन्डल बाजी

गाँव गिराव में जून की दोपहरी में आम के पेड़ के नीचे संकठा, दामोदर और बिरजू बैठे गप्प हांक रहे हैं। गजोधर  भईया का आगमन होता है-

ए संकठा कईसा है मतलब एकदम दुपहरी में गर्मी का पूरा आनंद लई रहे हो और बिरजुवा पसीना से लथपथ कितना चमक रहा है तू। पेट भरा है कि एक दम खाली ए बैठे हो। 

सवेरे से तेज गरम हवा चल रहा, आम गिर रहा है,खाइ रहे है और का गजोधर भईया..... सुने हैं हवा और तेज होगा, बरसात भी होगी,  कौनव तूफान आइ रहा है। आम गिरे तो सब बटोर लेंगे, लेकिन आप हियाँ कैसे ? 

उ सब छोड़ो पहिले ई बताओ घर के पिछवारे से नाली काहे खुला,बजबजा रहा है.....नया टेकनालजी आया है...एक दम हल्का ......एकदम सरल......वोका इस्तेमाल करो....। 

कईसा टेक्नालजी भईया......

जब बिजली रहता है तो आम के पेड़ के नीचे पड़ा रहता है....आम के आगे बढ़ता ही नहीं है...एकदम ही बुड़बक है। 

अरे टीवी में समाचार देखा कर...सब चैनल दिखा रहा है कल सवेरे से ही....बार बार दिखा रहा है कि सब आदमी,लड़का,औरत सब सीख सके।  विज्ञान का नया खोज है। .नाली को पूरा बंद कर,ढांक दे एकदम से ..... बस एक पतला छोटा से छेद छोड़ दे......और वोहमा पाइप लगाई के खाली सलंडर भर ले......मूरख कितना गैस बर्बाद कर रहा है तुम और तुम्हरे जैसा कितना लोग।  

बिरजू.....ए बिरजू......तू काहे अउंघा रहा है.....अबकी आलू का पैदावार त ठीक रहा है ना.....

हाँ गजोधर भईया.....आलू त पिछला बरस से दुगना पैदा हुआ है इस बार.....

भगवान की किरपा बरसी है और तू  बैठा अउंघा रहा है। जल्दी शहर जा....नया मशीन लगा है.....आलू से सोना बन रहा है.... । अब तक इतना सोना बन चुका है कि आधा शहर सोने का होई गवा है।........उ रम चरना याद है ना....

कऊन रम चरना भईया........ .

सुखियापुर वाला रमचरना .....वही जो अहमदाबाद गया था कमाने....एक साल पहिले लऊटा है...आस पास के दस गाँव में सबसे ज्यादा आलू वही के खेत में पैदा हुआ है....सोने के ईंटा से घर बनवा रहा है.......। 

हम बदनसीब त चूक गए अबकी आलू बोये ही नहीं पर तू काहे बेसुध पड़ा है। जा शहर आलू लेके।

अंदर की खबर है....केजीएफ़ वाले राकिया का नजर है  पूरे देश का आलू पे। पुष्पा भी जंगल से निकल चुका है।  जल्दी शहर नहीं गया त ना आलू रहेगा ना सोना बनाने का मशीन। कल सबेरे जल्दी ही निकल जा। 

दामोदरा..........ए दामोदरा ऐसे ही बीड़ी पी पी के करेजा ना जलाऊ। केतना सुंदर शरीर मिला है,ताकत मिला है.....संस्कार मिला है। एक महीना से भागवत सुन रहा है, दो दिन से मानस बांच रहा है और आज खाली बैठा बीड़ी पी रहा है।बीड़ी से एक दम करियाय जा रहा है। ई सब से बाहर निकाल देश दुनिया से कौनव मतलब नहीं है। का का हो रहा है....आदमी चाँद से मंगल और मंगल से आगे निकल रहा है । कुछ खबर है कि बस बीड़ी ही चलेगा आगे....।  देश दुनिया का प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं है तुम्हरा।  

का होई गवा गजोधर भईया ? उक्रेन खतम होई गवा का.....सुनामी फिर आई गवा का ? अमरीका पे हमला तो नाही हुआ ?  ईरान-इराक में तेल का कुआँ में आग तो नाही लगा ! का खबर है ?....

भक बुड़बक..... मुँह खोले नहीं कि भक्क से बक दिये।.....जब सोचो.......हरदम बुरा ही सोचो, अरे विदेश में सभ्यता कहाँ से कहाँ पहुँच रहा है और तुम हौ कि सुनामी और तेल के कुआँ में ही अटके हो....

का होई गवा गजोधर भईया.....

स्वीडन का नाम सुने हो....कइसे सुनोगे.....सारा समय तो पूजा पाठ में ....कुछ और बचा भी तो बीड़ी और बंडलबाजीईए में गुजार दे रहे हो। 

अब सुनो....का कहि रहे हैं हम कि स्वीडन में नया टूर्नामेंट होई वाला है,एकदम नया.....खेले तो बहुत होगे लेकिन ऐसा टूर्नामेंट सुने नहीं होगे.....

कईसा टूर्नामेंट भईया.......का खेला जाता है इसमे...

अरे उहै खेल जो सब अपनी औरतन के साथ खेलत हैं...दिया बुझा के....अब खुल्लम खुल्ला मुक़ाबला होई स्वीडन में...

चलिहौ का भऊजी का लइके, मुक़ाबला में हिस्सा लेने......

अरे का कहि रहे हो गजोधर भईया हमको तो सुनकर ही शरम आ रहा है..... अइसा भी कोई खेल होता है का....। 

होता है तबही तो बताई रहे हैं.....सभ्यता कतना आगे बढ़ रहा है....तुमको कुछ पता ही नही है.....। 

राम राम ..... राधेश्याम ....देवता हमका माफ करो....हम हियाँ ही ठीक है.....तुम जाओ खेलौ टूर्नामेंट.....। ई सब तुम्हरे जैसे महापुरुष के ही बस का है।हम तुमको अच्छे से जानत हैं ..... नियत के ठीक हो....संयम रखत हो....सही गलत खाली जानत नहीं हो,समझत भी हो......औरतन का देवी का तरह पूजत हो...नज़र एकदम गंगा मईया की तरह निर्मल रहता है....हम त....

हम त का ....दामोदर

हम त बस राम राम............राधेश्याम...।

काहे उल्टी गंगा बहाई रहे हो।धरम करम और सत्संग तुम करत हो और महापुरुष हमका बतावत हो दामोदर। केतना बड़ा झूठ बोले हो। बीड़ी का असर है ई सब।

सही कहत अहि भइया। ई झूठ नही सच है।
एक सच और भी है जिसका कहने का हिम्मत नही होता  लेकिन आज कहेंगे।.....

.......गजोधर भईया......हम त खाली बाहर से फूला, ताकतवर और संस्कारी दिखाई देता है। धरम करम और सत्संग भी करता है पर भीतर से एकदम कमजोर है...बाहर से जितना साफ है अंदर से उतना ही गंदा है...ई चेहरा पे ना जाओ.....इ खाली बाहर से चमकता है.....। भीतर से कोइला है....देवी की पूजा करता है लेकिन....
....लेकिन औरत का देखत ही हमका कुछ होई जात है .......छोट छोट लड़कियन के लिए भी मन में हवस रहता है....यही कारण त हम अपनी बिटिया को घर से बाहर नहीं निकलने देता... उसको अपना सामने भी नहीं आने देता है......बहुरिया को पर्दा मे रखता है.......बहिन से दूर रहता है। ...............

.....एक ठो राक्षस है हमरा भीतर जो रावण से भी बड़ा है, दुर्योधन से भी खतर नाक है......दुःशासन और कंस से भी बड़ा महापापी है ......जिसको हम रोज देखता है...... डर से अपनी आँख बंद कर लेता है......उ ठहाका लगा कर हँसता है और हमरी नजर में उतर जाता है। तुम्हरी भऊजी का पता है उ राक्षस के बारे में । तुमका नहीं पता ।

का बोल रहा है दामोदर.... बीड़ी के साथ गाँजा भी पीने लगा है क्या...... या अफीम सूंघ के बैठा है ? 

एकदम होश में.... गजोधर भईया। 

दामोदर सही कहत है उ राक्षस खाली दामोदर के भीतर ही नहीं हर तीसरे आदमी के भीतर है और रोज सवेरे समाचार पढ़ के त ऐसा लगता है कि छोट बड़ा सब ......वही के चपेट में है। सब ससुरा आदमी लोग ढोंग करता है सुर होने का.......असुर है ससुरा...असुर।   

बुद्धि भ्रष्ट होई गई है तुम दुइनों की। प्रेत सवार है। कौनव व्यभिचारी की कबर पे फूल चढ़ाई के लौटे हो का। का बात शुरू किए थे और का बक रहे...जबान खराब कर लिए...एक दम अशुद्ध होई गए हो...चलो हियाँ से, चलकर  गंगा में एक डुबकी लगाओ सब निर्मल हो जाएगा।

इका तो गंगा मईया भी न धोइ सकत है। चारो धाम,मंदिर मस्जिद, देवी,देवता, जादू टोना जंतर मंतर केहू ना ठीक कर सकत है।........

......केतना करोड़ साल लगा कीड़ा मकोड़ा से जानवर, जानवर से आदमी और आदमी से इंसान बनई में।
एक क्षण भी न लगा सब तहस नहस, बर्बाद करई में।
जो तुमको दुनिया में लाई, लोरी गाई के सुलाई, पाल पास के बड़ा की, बिटिया बनके भाग्य जगाई, बहिन बनके स्नेह लुटाई ....जेका तुम अर्धांगिनी कहत हो,अपनी आत्मा का हिस्सा कहत हो ......देखो अपने आस पास कइसे मार रहे, पीट रहे हत्या कर रहे।.... चीर रहे, नोच रहे, कैसे गीध के जैसन देखो।.....इतनी निर्ममता कि गीध भी ना देख पाए ,लुपत होई गए दुनिया से।

देख सकत हो तो देखो ओकी छाती पे अपने दांतों और नाखूनों के निशान सुन सकत हो तो सुनो..खून से लथपथ, निर्बस्त क्षत विक्षत तुम्हरे पांव के नीचे से आती उसकी चीख। गोंद दिए हो चाकुओं से,टुकड़ा टुकड़ा कर दबाई दिए हो मिट्टी में । कौनव सबूत कौनव निशान ना रहे जलाई रहे हो हर रोज।

एतनी क्रूरता,......पहचान पाई रहे हो कि नही हमको और अपने को। ये हमही,बिरजू और तुमही हो गजोधर भइया।

ई...इ..ई दामोदरा और बिरजुआ तुम दुइनों होगे मगर हम नही है। ठीक से पढ़ लिख लिए होते तो दिमाग भ्रष्ट ना होता। हम त पहिले ही कहि रहे थे गाँव छोड़ छाड़ के शहर चलो। लेकिन माने नहीं...ना तुम ना तुम्हारे माई बाप।

वाह गजोधरा बड़ा घमंड है तोका अपने शहर पे,पढ़ाई लिखाई पे। त खबर मिली कि नही.....बहुतै पढ़ा लिखा,इतिहास,भूगोल विज्ञान,नियम कानून का ज्ञानी, समाज का रक्षक..बड़े शहर का बड़ा अफसर....कैसा लूटा है अपने साथ काम करने वाली औरत का। ....
कइसे टुकड़ा टुकड़ा कर कूकर में उबाल कर कुत्ते को खिलाता रहा तुम्हारे बड़े शहर का बड़ा आदमी। कौनव जगह सुरक्षित है तुम्हरे शहर में, दफ्तर, अस्पताल, बस, ट्रेन, गली, मोहल्ला,आरक पारक।

.....ई सबसे बच के कोई का लगता है कि दुनिया बनाने वाले गॉड,भगवान,अल्लाह की शरण में जाके कुछ सहारा मिलेगा त भगवान का बड़का भगत ही दबोच ले रहा है...तार तार कर दे रहा है। .....

जो संस्कारी है जेका तुम पैरवी करत हो जो शांत है, सौम्य है, जेकरे हृदय में औरत के लिए बड़ी श्रद्धा है सम्मान है। तुम देख नही पा रहे हो वो हाथ पांव नही हिला रहा है, चिल्ला भी नही रहा है,गालियां भी नही दे रहा है.... औरत को देवी मान हाथ जोड़े खड़ा है वो कैसे अपनी आंखों से उस देवी के कपड़े उतार रहा है,उसके आंचल में झांक रहा है। एक मौका नहीं छोड़ रहा है,नजर गड़ाए है। तुम नही देख सकत हो काहे की तुम खाली बाहर बाहर,अच्छा अच्छा देख रहे है। हम बाहर देख कर अपने भीतर भी देख रहा हूँ। कितना विकराल,वीभत्स,अट्टहास कर रहा हमरे भीतर।

ममता प्रेम और सहानुभूति की चाह में हमरे कंधे पर सर टिकाए आखिर कहाँ जाए ई बिटिया, ई बहिन,ई देवी हम से छिप के, हम छिप के।

का तुम बचाई सकते हो, तुम्हरा भगवान बचा सकता है, शिक्षा दीक्षा, कानून और समाज बचाई सकता है। 

बस कर दामोदरा...लेई जा बिरजुआ इका हियाँ से अब और नहीं सुना जाता।

खिड़की से झाँकती दामोदर की पत्नी ये सब सुन अपनी बिटिया को आँचल में छुपाए आसमान की ओर देख रही है।

#नारी तुम केवल श्रध्दा हो।
#बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।
#यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तंत्र देवताः
#अपराजिता



  

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