Saturday, July 15, 2023

आवरण

मनुष्य से बड़ा व्यभिचारी शायद ही जगत में कोई दूसरा जीव होगा। आवरण का प्रपंच तो मनुष्य की दुर्बलता और अहंकार का प्रतीक है। मनुष्य ही है जो जानवरों की खाल से बने वस्त्र पहन सकता है,पंछियों को पिंजरे में कैद कर सकता है,कुत्तों के गले में पट्टा, बैलों के गले में घंटी और घोड़े के पांव में नाल ठोंक सकता है यह प्रतिभा जानवरों में नही है। इसीलिये तो जानवरों में बलात्कार करने का हुनर नही है, अनावृत्त रहकर भी बेचारे सहज रहते हैं कैसे तुच्छ जीव हैं। पुरुष सदियों से आधे अधूरे नंग धड़ंग स्त्रियों के सामने बेटे,भाई, भतीजे, देवर,ससुर चाचा,ताऊ बनकर आते रहे पर स्त्रियों सहज रहीं किंतु पुरुष स्त्री को आंशिक अनावृत्त देख भी सहज न हो सके, वासनाओं में उलझे रहे और अपनी दुर्बलता को चरित्रहीनता और व्यभिचार जैसे शब्दों के पीछे छुपा दिया। इसीलिए तो कभी चाचा,कभी मामा, कभी भाई, कभी देवर और आजकल तो बाप भी। सीमाओं ने संसार को जन्म दिया है और जो सीमाओं के बाहर है वो परमात्मा है।

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